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(१८६) नय०- महा-सेनापति कौन था ? -इसका पता तो नहीं लगा सका। महा० -संवाद कहाँ भेजना चाहिए ? नय०-कान्यकुब्ज या प्रतिष्ठानपुर । महा०-अच्छी बात है। नय०-पर संवाद भेजना सहज नहीं है, क्योंकि इस समय नगर से कोई बाहर नहीं निकलने पाता । महा०-तब तो चिंता की बात है अच्छा तुम बैठो, मैं कोई उपाय सोचता हूँ। महास्थविर के सामने एक वेदी के ऊपर एक घंटा रखा था। उसे उठाकर उन्होंने दो बार बजाया । क्षण भर भी नहीं हुआ था कि बाहर से किसी ने किवाड़ खटखटाया। नयसेन ने उठकर किवाड़ खोला। एक वृद्ध भिक्खु ने कोठरी में आकर वृद्ध को प्रणाम किया । महास्थविर बोले "जाकर देखो तो मृगदाव के आचार्य बुद्धश्री चले गए कि अभी हैं ।" भिक्खु प्रणाम करके बाहर गया और फिर थोड़ी देर में लौट कर बोला "आचार्य बुद्धश्री अभी संघाराम में ही हैं ।” महास्थविर ने उन्हें बुला लाने के लिए कहा। भिक्खु के कोठरी से बाहर चले जाने पर महास्थविर ने नयसेन से कहो “चरणाद्रिगढ़ क्यों जा रहे हैं, कुछ समझ में नहीं आता।" -मैंने तो संयोग से एक सैनिक के मुँह से यह बात सुनी । सुनते ही मैं पश्चिम तोरण की ओर दौड़ा। वहाँ जाकर देखा कि सच- मुच बहुत से अश्वारोही जा रहे हैं । वहीं से मैं सीधे आपके पास संवाद देने आ रहा हूँ। महा०-जब से यशोधवल आए हैं तब से इधर कोई संवाद मुझे नहीं मिल रहा है। नगर में, शिविर में, राज भवन में सैकड़ों नय०-