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(१८५) सैनिक ने रमणी के कान के पास मुँह ले जाकर कुछ कहा । पास बैठे हुए पुरुष ने कुछ भी न सुना । अन्त में रमणी ने 'जाओ' कह कर सैनिक को ढकेल दिया। वह रुपए उठा कर हँसता-हँसता चला गया । पुरुष चुपचाप अपने आसन पर बैठा रहा । जब सैनिक चला गया तब रमणी फिर पहले की तरह मुँह फेर कर बैठी । पुरुष यह देख हँस कर बोला “हैं ! फिर वही बात।" स्त्री चुप रही । पुरुष फिर उठ कर स्त्री के पास पहुँचा और उसका माथा छू कर शपथ खाने लगा। वह प्रसन्न होकर उसकी ओर मुँह करके बैठी । सहुआनी पाठकों की पूर्व परिचिता वही परचून वाली है जिसके यहाँ यज्ञ वर्मा के पुत्र अनन्त वर्मा ने आश्रय लिया था। महादेवी जिस समय प्रासाद में विचार करने बैठी थीं तब महाप्रतीहार विनय सेन इसी को पकड़ लाए थे। रमणी का मान भंजन हो चुकने पर दोनों वार्तालाप में प्रवृत्त हुए। पुरुष ने ढंग से उस सैनिक की बातचीत चला कर उसका परिचय जान लिया, किन्तु वह सैनिक कहाँ जायगा, इस विषय में कुछ न पूछा । सैनिक के चले जाने के प्रायः दो दण्ड पीछे वह पुरुष भी अपने आसन से उठा । रमणी ने पूछा “अब तुम कहाँ चले ?" पुरुष-दक्षिण तोरण के पास मैं अपने एक मित्र के घर एक बहु- मूल्य वस्तु भूल आया हूँ। यदि इसी समय जाकर पता न लगाऊँगा तो फिर न मिलेगी। रमणी -अब इतनी रात को जाना ठीक नहीं। पुरुष-क्यों? रमणी-मार्ग में चोर-डाकू मिलेंगे। पुरुष-मेरे पास अस्त्र रमणी-बहुत सावधान होकर जाना । रात को लौटोगे न ? n है