( १७८) की मृत्यु का संवाद दूत द्वारा भेजा है । यद्यपि दूत के पाटलिपुत्र पहुँचने के पहले ही श्राद्ध आदि कृत्य हो चुके होंगे, पर सम्राट्-वंश के किसी व्यक्ति का इस समय वहाँ जाना परम आवश्यक है। प्रधान सचिव का यह प्रस्ताव सुन यशोधवलदेव, नारायण शर्मा और रामगुप्त आदि राजपुरुष धन्य धन्य कहने लगे । सम्राट् बोले "अमात्य ! आपका प्रस्ताव बहुत उचित है, पर स्थाण्वीश्वर किसको भेनँ । यदि कोई दूर का संबंधी या आत्मीय भेजा जायगा तो प्रभाकर- वर्धन अपना अपमान समझेंगे"। हृषी०-किसी संबंधी को भेजना किसी प्रकार ठीक नहीं; ऐसा करने से तुरंत झगड़ा खड़ा हो जायगा । युवराज शशांक से प्रभाकर- वर्द्धन मन ही मन बुरा मानते हैं इसलिए उन्हें भेजना तो बुद्धिमानी का काम नहीं । माधवगुप्त ही भेजे जा सकते हैं, और कोई उपाय मैं नहीं देखता। सम्राट -माधव तो अभी निरा बच्चा यशो-महाराजाधिराज ! ऐसे स्थान पर बच्चे को भेजना ही ठीक है क्योंकि इससे किसी प्रकार के विवाद आदि की उतनी संभावना नहीं रहती। सम्राट-तो फिर माधव का जाना ही ठीक है, पर उनके साथ जायगा कौन ? यशो०-कुमार माधवगुप्त के साथ किसी बड़े चतुर मनुष्य को भेजना चाहिए । नारायण शर्मा यदि जाते तो बहुत ही अच्छा होता' पर- नारायण-यदि महाराजाधिराज की आज्ञा हो तो इस वृद्धा- वस्था में भी मैं शास्त्र छोड़कर अभी शस्त्र धारण करने को प्रस्तुत हूँ, स्थावीश्वर जाना तो कोई बड़ी बात नहीं है।
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