(१७१) शशांक-मारेहीगे। चित्रा-तुम्हारी ओर के लोग भी मरेंगे? शशांक न जाने कितने लोग मरेंगे, कोई ठिकाना है। शत्रु के अस्त्रशस्त्रों की चोट से न जाने कितने सैनिक लँगड़े लूले हो जायेंगे। चित्रा-तो फिर तुम लोग क्यों जाते हो ? शशांक-क्यों जाते हैं, यह बतलाना बड़ा कठिन है। सनातन से ऐसी प्रथा मनुष्य समाज में चली आ रही है, यही समझकर जायँगे। सैंकड़ों मारे जायँगे, हजारों लँगड़े लूले होंगे, पीड़ा से तड़पेंगे, न जाने कितने लोग अनाथ हो जायेंगे, इतना सब होने पर भी हम लोग जायँगे। लतिका अब तक चुपचाप बैठी थी । वह बोल उठी "कुमार ! तुम लोग जिन्हें मारने जाओगे वे लोग भी तुम्हें मारेंगे। क्या तुम लोगों को भी वे मार सकेंगे? शशांक- सुयोग पावेंगे तो अवश्य मारेंगे, क्या छोड़ देंगे ? लतिका और कुछ न बोली। चित्रा का रोने का रंग ढंग दिखाई पड़ा। कुमार की बात सुन लतिका की गोद में मुँह छिपाकर चित्रा सिसकने लगी । कुमार और नरसिंह उसे शांत करने लगे। इस बातचीत में जल विहार का सारा प्रमोद भूल गया, मृत्यु के प्रसंग ने सारा आनंद किरकिरा कर दिया। बहुत देर तक यों ही चुपचाप रहकर कुमार ने माझियों को नगर लौट चलने की आज्ञा दी । नाव लौट पड़ी। धार में पड़कर नाव बहुत दूर निकल आई थी, चढ़ाव पर प्रासाद तक आने में उसे बहुत विलंब लगा। चित्रा के प्रश्न पर कुमार के मन में एक नया भाव उठ रहा था। इसके पहले उनके मन में और कभी मृत्यु का ध्यान नहीं आया था। युद्ध में मृत्यु की भी संभावना है, यह बात अब तक किसी ने उन के सामने नहीं कही थी। कुमार सोचते थे कि
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