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दूसरा परिच्छेद जलविहार चारों ओर नदियों से घिरे हुए वंगदेश पर चढ़ाई करने के लिए अश्वारोही या पदातिक सेना की अपेक्षा नौसेना अधिक आवश्यक है, यशोधवलदेव इस बात को जानते थे। उन्होंने जलसेना खड़ी करने का भार अपने ऊपर लिया। मगध देश में ऐसी नदियाँ बहुत कम थीं जिनमें सब ऋतुओं में नावें चल सकती हों, इससे मगध देश के नाविकों को लेकर पूर्व की ओर चढ़ाई करने में सफलता की कम आशा थी। यह सोच कर यशोधवलदेव ने गौड़ देश से माझी बुलवाकर नौसेना खड़ी की । गौड़ देश के काले और नाटे नाटे माझियों की नाव चलाने में फुरती देख पाटलिपुत्र के नागरिक दंग रह जाते थे। प्रति दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक नई नई नौसेना गंगा की धारा में नाव चलाने और युद्ध करने का अभ्यास करती थी। मगध-वासी नागरिक तीर पर खड़े होकर उनकी अद्भुत क्रीड़ा और शिक्षा देखते थे। शशांक, यशोधवलदेव, अनंतवर्मा, नरसिंहगुप्त और लल तीसरे पहर नौसेनां की शिक्षा में योग देते थे। कभी कभी सम्राट भी रनिवास की स्त्रियों को साथ लेकर नौका पर भ्रमण करने निकलते थे। कुमार भी कभी कभी अपने संगी साथियों के साथ चित्रा, लतिका और गंगा को लेकर चाँदनी रात में जलविहार करने जाते थे। उस समय नाव पर तरुण कोमल कंठ के साथ मधुर संगीत ध्वनि सुनाई देती थी। कुमार की बालसंगिनि भी अब तरुणावस्था में पैर रख चुकी थी । महादेवी अब उन्हें बिना किसी सहचरी के अकेले नहीं जाने देती थीं । प्रायः