(१६६) देखा तब माधव और चित्रा के साथ बालू में नाकर खेलने लगा । ठीक है न चित्रा ? चित्रा उठकर सीढ़ी के ऊपर आ बैठी थी। उसने सिर हिलाकर कहा "हाँ" । यशोधवलदेव ने पूछा "शक्रसेन ने तुमसे क्या कहा था ?" शशांक-उसकी सब बातों का तो मुझे स्मरण नहीं है, केवल उसका यही कहना अब तक नहीं भूला है कि शशांक, तुम कभी सुखी न रहोगे। तुम जिस पर विश्वास करोगे वही विश्वासघात करेगा। तुम विना किसी संगी साथी के अकेले विदेश में मरोगे। यशो०-पुत्र ! वज्राचार्य शक्रसेन बौद्धसंघ का एक प्रधान नेता और साम्राज्य का घोर शत्रु है ! तुम कभी उसकी बात का विश्वास न करना और न कभी उसके पास जाना । लल्ल-प्रभो! पर वज्राचार्य ज्योतिष की विद्या में पारदर्शी प्रसिद्ध है। यशो०-लल्ल ! स्वार्थ के लिए बौद्ध जो न करें सो थोड़ा है। देखते देखते घोर अंधकार चारों ओर छा गया। दीपक हाथ में लिए एक परिचारक ने आकर कहा "युवराज ! महाराजाधिराज आपको स्मरण कर रहे हैं" । सब लोग घाटपर से उठकर प्रासाद के भीतर गए। ---
पृष्ठ:शशांक.djvu/१८४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।