( १५०) यशो०-तुम शस्त्र चला सकते हो ? वसु०-मेरी परीक्षा कर ली जाय । यशो बहुत अच्छी बात है, आओ, तुम्हें मैं अस्त्र देता हूँ। वसुमित्र और यशोधवल प्रासाद के भीतर गए, तरला भय से ब्याकुल हो कर उसी स्थान पर खड़ी रही। उसकी आँखों में आँसू देख सम्राट ने उसे धीरज बँधाने के लिए कहा “कोई डर की बात नहीं है। सेठ के लड़के के साथ एक सहस्र अश्वारोही रहेंगे, कोई उसे बल से पकड़ नहीं सकता"। फिर विनयसेन से उन्होंने कहा "इसे ले जाकर अंतःपुर में महादेवी के यहाँ कर आओ"। इतना धीरज बँधाने पर भी तरला के जी का खटका न मिटा । वह चुपचाप विनयसेन के साथ अंतःपुर के भीतर गई । दूसरे तोरण के बाहर सुसजित शरीररक्षी अश्वारोही सेना आसरे में खड़ी थी। फाटक के सामने ही तीन अश्वपाल तीन सजे सजाए घोड़े लिए खड़े थे । बात क्या है कुछ न समझकर बहुत से लोग फाटक के बाहर खड़े आपस में बातचीत कर रहे थे। इतने ही में यशोधवल युवराज शशांक और वसुभित्र को लिये फाटक के बाहर आए। उन्हें देख सैनिकों ने सामरिक प्रथा के अनुसार अभिवादन किया। तीनों पुरुष अश्वपालों से घोड़े लेकर उनपर सवार होकर तीसरे तोरणसे होकर निकले । सहस्र अश्वारोही सेना भी उनके साथ-साथ चली । तोरंण पर इकडे लोगों ने चकित हो देखा कि महावलाध्यक्ष हरिगुप्त स्वयं सेना का परिचालन कर रहे हैं हैं। उन लोगों की समझ में कुछ भी नहीं आया कि सेना कहाँ जा रही है । वे खड़े ताकते रह गए ! अश्वारोही सेना लिए योशोधवलदेव ने उस पुराने बौद्ध मंदिर में जाकर क्या किया यह पहले कहा जा चुका है । संघाराम में वसुमित्र को किसी ने नहीं पहचाना। बात यह थी कि प्रासाद से प्रस्थान करते 1
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