, । ( १३३) की रक्षा के लिए सुशिक्षित सेना और बहुत सा धन चाहिए । सेना और अर्थसंग्रह के लिए राजस्व और राजषष्ठ संग्रह की सुव्यवस्था आवश्यक है। सम्राट-यशोधवल ! तुम्हारी एक एक बात इस समय मेरे लिए एक एक विकट समस्या है । मैं देखता हूँ कि मेरे किए इनमें से एक बात भी नहीं हो सकती। यशो०-महाराजाधिराज के निकट मैंने जिस प्रकार ये समस्याएँ उपस्थित की, उसी प्रकार इनकी पूर्चि का उपाय भी पहले से सोच रखा है। कुमार आ जायँ तो मैं निवेदन करूँ। तीन कार्य तो इस समय हो सकते हैं, पर उनके लिए बहुत धन की आवश्यकता है। हृषीकेश-यशोधवल ! इसी अर्थाभाव के कारण ही तो हाथ पैर नहीं चल सकता । तुम इतना धन कहाँ से लाओगे? हरिगुप्त द्वार पर खड़े थे। वे बोल उठे “कुमार आ रहे हैं"। विनयसेन युवराज शशांक को साथ लिए कोठरी में आए। युवराज अपने पिता के चरणों में प्रणाम करके और समाहत पुरुषों को प्रणाम करके खड़े रहे। सम्राट ने उन्हें बैठने की आज्ञा दी। यशोधवल ने बढ़कर उन्हें अपनी गोद में बैठा लिया। सम्राट बोले "यशोधवल ! क्या कहते थे, अब कहो' । महानायक कहने लगे “युवराज ! साम्राज्य की बड़ी दुर्दशा हो रही है। प्राचीन गुप्त साम्राज्य का दिन दिन पतन होता चला जा रहा है। उसकी रक्षा का यत्न सब का सब प्रकार से कर्तव्य है। अब तक साम्राज्य की रक्षा का ध्यान छोड़कर सब लोग चुपचाप बैठे थे, आज चेत रहे हैं। इस प्राचीन साम्राज्य के साथ, करोड़ों प्रजा का धन, मान और प्राण गुथा हुआ है । इसका ध्वंस होते ही पूर्व देश में महाप्रलय सी आ पड़ेगी। इधर सैकड़ों वर्ष से पाटलिपुत्र की ऐसी दशा कभी नहीं हुई थी। शकों 9
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