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( १३२) में पड़ते ही सम्राट का ध्यान टूटा और वे बोले “अच्छा, यशोधवल ! तो फिर यही सही। विधाता का लिखा कौन मिटा सकता है ?" यशो०-महाराजाधिराज ! विनयसेन आज्ञा के आसरे खड़े हैं। सम्राट-महाप्रतीहार ! तुम युवराज शशांक को चुपचाप यहाँ बुला लाओ। विनयसेन प्रणाम करके बाहर निकले । सम्राट ने यशोधवलदेव से कहा "यशोधवल ! अच्छा अब बताओ, क्या क्या करना चाहते हो । यशो०-मेरे चार प्रस्ताव हैं जिन्हें मैं महाराज की सेवा में पहले ही निवेदन कर चुका हूँ। इस समय साम्राज्य के संचालक यहाँ एकत्र हैं, उनके सम्मुख भी उपस्थित कर देना चाहता हूँ। सम्राट-तुम्हारे प्रस्तावों को मैं ही सुनाए देता हूँ। महानायक ने मेरे सामने चार प्रस्ताव रखे हैं। प्रथम-प्रांत और कोष्ठ की रक्षा; द्वितीय-अश्वारोही, पदातिक और नौसेना का पुनर्विधान; तृतीय -राजस्व और राजषष्ठ के संग्रह का उपाय; चतुर्थ-वंगदेश पर फिर अधिकार । ये चारों प्रस्ताव, मैं समझता हूँ, सब को मनोनीत होंगे। अब बिचारने की बात है उपयुक्त कर्मचारियों का निर्वाचन और अर्थसंग्रह । राजकोष तो, आप लोग जानते ही हैं, शून्य हो रहा है । आवश्यक व्यय भी बड़ी कठिनता से निकलता है। रहे कर्मचारी, सो पुराने और नए दोनों अयोग्य हैं। उनमें न अनुभव है न कार्यतत्परता यशो०- 0-इन चारों प्रस्तावों के अनुसार जब तक व्यवस्था न होगी तब तक साम्राज्य की रक्षा असंभव समझिए। प्रांत और कोष्ठ

  • प्रांत=सीमा। सरहद ।

+कोष्ठ = प्राचीर से घिरे हुए नगर, दुर्ग आदि ।