( १७ ) कराया है। मूल पुस्तक में करुणरस की पुष्टि के लिए यशोधवल की कन्या लतिका का शशांक पर प्रेम दिखा कर शशांक के जीवन के साथ ही उस बालू के मैदान में उसके जीवन का भी अंत कर दिया गया है। कथा का प्रवाह फेरने के लिये मुझे इस उपन्यास में दो और व्यक्ति लाने पड़े हैं-सैन्यभीति और उसकी बहिन मालती। लतिका का प्रेम सैन्यभीति पर दिखाकर मैंने उसके प्रेम को सफल किया है। शशांक के निःस्वार्थ जीवन के अनुरूप मैंने मालती का अद्भुत और अलौकिक प्रेम प्रदर्शित किया है। कलिंग और दक्षिण कोशल में बौद्ध तांत्रिकों के अत्यचार का अनुमान मैंने उस समय की स्थिति के अनुसार किया है। वंग और कलिंग में बौद्ध मत की महायान शाखा ही प्रबल थी। शशांक के मुख से माधवगुप्त के पुत्र आदित्यसेन को जो आशीर्वाद दिलाया गया है वह भी आदित्यसेन के भावी प्रताप का द्योतक है। Fract, १२ फरवरी, १९२२ ma रामचन्द्र शुक्ल
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