उन्नीसवाँ परिच्छेद साम्राज्य का मंत्रगृह नए प्रासाद के अलिंद में खड़े महाप्रतीहार विनयसेन किसी चिंता में हैं। दोपहर का समय है, प्रासाद के आँगन में सन्नाटा है। दो एक द्वारपाल इधर उधर छाया में खड़े हैं। अलिंद के भीतर खंभों के बीच दो चार दंडधर भी दिखाई पड़ते हैं। एक पालकी आँगन में आई और अलिंद के सामने खड़ी हुई। कहारों ने पालकी रखी, उसमें से वृद्ध हृषीकेश शर्मा उतरे। जान पड़ता है, विनयसेन उन्हींका आसरा देख रहे थे, क्योंकि उन्हें देखते ही वे अलिंद से नीचे आए और प्रणाम करके बोले "प्रभो! आपको बहुत विलंब हुआ। सम्राट और यशोधवलदेव आपके आसरे बहुत देर से बैठे हैं ।" वृद्ध ने क्या उत्तर दिया, विनयसेन नहीं समझे। वे उन्हें लिए सीधे प्रासाद के अंतःपुर में घुसे । विनयसेन ज्यों ही अलिंद से हटे, एक दंडधर आकर उनके स्थान पर खड़ा हो गया। चलते चलते हृषीकेश शर्मा ने पूछा "और सब लोग आ गए हैं ?" विनय-महाधर्माध्यक्ष और महाबलाध्यक्ष अतिरिक्त और किसी को संवाद नहीं दिया गया है। हृषी०-क्यों ? विनय-महाराज की इच्छा । अंतःपुर के द्वार पर जाकर विनयसेन ने एक परिचारिका का बुलाया और महामंत्री को सम्राट के पास पहुँचाने आज्ञा देकर वे
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