। ( ११०) बुद्ध०-वज्राचार्य ! सैकड़ों वर्ष तक बौद्धसंघ की जो दुरवस्था रही वह किसी प्रकार इधर दूर हुई । अब जब जच्छे दिनों का उदय दिखाई पड़ रहा है तब असावधान रहना मूखों का काम है। जिन लोगों पर विश्व का कल्याण अवलबित है उन लोगों के योग्य यह कार्य नहीं हुआ । करुष देश के संघस्थविरों के अपराध का विचार तो पीछे होगा अब इस समय जो विपचि सिर पर है उससे उद्धार का उपाय निका- लना है। यशोधवल आया है, राजसभा में बैठा है और इस समय सम्राट के पास ही प्रासाद में रहता है। यदि पहले से कुछ संवाद मिला होता तो इस बात का कोई न कोई उपाय किया गया होता कि वह सम्राट् के यहाँ तक न पहुँचने पावे । यशोधवल कोई ऐसा वैसा शत्रु नहीं है, यह तो आप लोग जानते ही हैं । किसी सामान्य बात के लिए वह पाटलिपुत्र नहीं आया है, इतना तो निश्चय समझिए । और जब वह आ गया है तब वह साम्राज्य की ऐसी अव्यवस्था देख चुप- चाप न बैठेगा, यह भी निश्चित है। सम्राट और यशोधवल के बीच क्या क्या परामर्श हुआ है, इसके जानने का भी हमारे पास कोई उपाय नहीं है । इस समय हम खोगों को बहुत ही सावधान रहना पड़ेगा, नहीं तो सर्वनाश हुआ समझिए । यशोधवल किस प्रकार नगर में आया, कुछ सुना है ? -मैंने अपनी आँखों देखा है। शशांक को मारने के लिए मैं प्रासाद के चारों ओर फिर रहा था। उसे भय दिखाने के लिए मैं गंगाद्वार पर खड़ा होकर भविष्य सुना रहा था; इसी बीच में मैंने देखा कि एक छोटी सी नाव आकर घाट पर लगी। उस पर से एक वृद्ध और एक युवक उतरा। उनके निकट आते ही मैंने यशोधवल को पह- चान लिया, पर उसने मुझे नहीं पहचाना। मैं विपद देखकर एक पेड़ पर चढ़ गया और किसी प्रकार अपनी रक्षा कर सका । बुद्ध ०- -उसके अनंतर क्या क्या हुआ कुछ पता लिया ? शक्र०-
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