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(१०८) प्रतीहार कुछ दूर पर खड़ा था पुकार सुनते ही उसने आकर सिर झुकाया। सम्राट ने आज्ञा दी “विनयसेन को बुला लाओ।" द्वारपाल अभिवादन करके चला गया। थोड़ी देर में विनयसेन आ पहुँचे। सम्राट ने कहा "हृषीकेश शर्मा, नारायण शर्मा और हरि गुप्त से जाकर कह आओ कि दोपहर को प्रासाद में आर्वे ।" विनयसेन अभिवादन करके चले गए। सम्राट और यशोधवलदेव प्रासाद में लौट गए। सोलहवाँ परिच्छेद मंत्रगुप्ति पाटलिपुत्र के प्राचीन राजप्रासाद के चारों ओर गहरी खाई थी। वह गंगा के जल से सदा भरी रहती थी। घोर ग्रीष्म के समय में भी खाई में जल रहता था। इस समय वर्षा काल में खाई मुँह तक भरी हुई है, पर और ऋतुओं में वह बहुत दूर तक जंगल से ढंकी रहती थी। जिस नाली से होकर गंगा का पानी खाई में आता था, वह कभी साफ न होने के कारण बालू से पट गई है। जब वर्षा काल में गंगा का जल बढ़ता है तब उस नाली से ऊपर होकर खाई में उलट पड़ता है। परिखा के ऊपर का प्राकार भी जगह-जगह से गिर गया है। प्रासाद के चारों ओर जो परकोटा था वह पत्थर का था, पर नगर प्राकार काठ का था। मरम्मत न होने से नगर के चारों ओर की दीवार प्रायः टूट-फूट