(१०२) शत्रुओं का खटका उन्हें बराबर लगा रहता है, थोड़ी थोड़ी बातों से वे घबरा उठते हैं। दोनों कुमार भी अभी राजकाज चलाने के योग्य नहीं हुए हैं । हृषीकेश शर्मा और नारायण शमा ही सारा भार अपने ऊपर उठाए हुए हैं, पर वे भी अब बहुत वृद्ध हो गए हैं। अब उनके परिश्रम करने के दिन नहीं रहे | क्या किया जाय ?" चिंता करते करते वृद्ध का चेहरा एक बारगी दमक उठा। उन्होंने मन ही मन स्थिर किया "मैं स्वयं राज्य के मंगल के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करूँगा। कीर्णिधवल ने साम्राज्य के लिए रणक्षेत्र में अपने प्राण दे दिए, मैं भी अपना शेष जीवन कर्मक्षेत्र में ही बिताऊँगा। जापिल* के महानायक सदा से साम्राज्य की सेवा में तन मन देते आए हैं। उनका अंतिम वंशधर होकर मैं भी उन्हीं का अनुसरण करूँगा।" वृद्ध इस प्रकार दृढ़ संकल्प करके कर्मक्षेत्र में आने के लिए आतुर हो उठे। उन्होंने पुकारा "कोई है ?” अलिंद के एक कोने से एक प्रतीहार प्रणाम करके सामने आ खड़ा हुआ। यशोधवदेव ने उससे पूछा “सम्राट इस समय कहाँ हैं ? मैं अभी उनसे मिलना चाहता हूँ।" प्रतीहार ने कहा "महाराजाधिराज गंगाद्वार की ओर गए हैं।" यशोधवलदेव ने कहा “अच्छा, उन्हें संवाद दे दो।" प्रतीहार अभिवादन करके चला गया।
- रोहिताश्वगढ़ के पास का एक ग्राम । इसे आजकल जपला कहते हैं।
यशोधवलदेव के पूर्वज इसी ग्राम के थे।