( १३ ) गौड़ाधिप का नाम 'नरेन्द्रगुप्त' लिखा था। प्राचीन कर्णसुवर्ण ( मुर्शिदा- बाद ज़िले में) के खंडहरों में रविगुप्त, नरेंद्रादित्य, प्रकटादित्य, विष्णु- गुप्त आदि कई गुप्तवंशी राजाओं की जो मुहरें मिली हैं उनमें नरेंद्रा. दित्य के सिक्के नरेंद्रगुप्त या शशांक के ही अनुमान किए गए हैं । इनमें एक ओर तो ध्वजा पर नंदी बना रहता है और राजा के बाएँ हाथ के नीचे दो अक्षर बने होते हैं और दूसरी ओर 'नरेंद्रादित्य' लिखा रहता है। पर इस विषय में ध्यान देने की बात यह है कि ऐसे सिक्के भी मिले हैं जिनमें "श्रीशशांकः” लिखा हुआ । इन पर एक और तो बैल पर बैठे शिव की मूर्ति है; बैल के नीचे 'जय' और किनारे पर 'श्रीश' लिखा मिलता है। दूसरी ओर लक्ष्मी की मूर्ति है जिसके एक हाथ में कमल है। लक्ष्मी के दोनों ओर दो हाथी अभिषेक करते हुए बने हैं। बाएं किनारे पर "श्रीशशांक" लिखा है। रोहतासगढ़ के पुराने किले में मुहर का एक साँचा मिला है जिसमें दो पंक्तियाँ हैं- एक में "श्रीमहासामंत" और दूसरी में "शशांकदेवस्य" लिखा है। रोहतासगढ़ में यशोधवलदेव का भी लेख है जो इस उपन्यास में महा सेनगुप्त और शशांक के सामंत महानायक माने गए हैं। शशांक के गुप्तवंशी होने का उल्लेख प्रसिद्ध इतिहासज्ञ विसेंट स्मिथ ने भी किया है- The king of Central Bengal, who was prob- ably a scion of the Gupta dynasy, was a wors- hizper of Shiva. इस प्रकार ऐतिहासिक अनुमान तो शशांक को गुप्तवंश का मान कर ही रह जाता है। पर इस उपन्यास के विज्ञ और प्रत्नतत्व-दर्शी लेखक शशांक को महासनगुप्त का ज्येष्ठ पुत्र और माधवगुप्त का बड़ा भाई मान कर चले हैं। यदि और कोई उपन्यास-लेखक ऐसा मान कर
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