पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/९८

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अंगिरा में बसे हुये थे, और उनके आसपास दास-दासी भी पहले हीकी तरह हाथ-बाँधे खड़े रहते थे। उसके मनमें जिज्ञासा होने लगी कि आखिर विजवी आर्य यहाँपर कहाँ रहते हैं। सुमित्र असुराजकै महलमें रहता था । एक दिन उसने गंधारवणिककी ओरसे भेट लेकर पालमादको उसके पास मैजा । पालने लौटकर बतलाया कि पीले केश और गौर मुखको छोड़ देनेपर सुमित्र बिलकुल असुरराजा बन गया है। उसका निवास किसी आर्य सैनापतिका सीधा-सादा घर नहीं है, बल्कि सोने-चाँदीसे चमचमाता असुर दर्बार है। उसके पाश्चर सैनिकोमे भी वह सादगी नहीं है। सप्ताह बीतते-बीतते मालूम हो गया कि वह आर्योका पता लगता है असुर-कन्याओं नृत्यों तथा सुरा-गौष्टियोमें। कितनी ही आर्य-स्त्रियाँ अपने पतियोंके पास जाना चाहती हैं, किन्तु बहानाकरके उन्हें आनेसे मनाकर दिया जाता है । सुमित्रने बहुत बार सन्देश भेजनेपर भी अपनी स्त्रीको अनेसे रोक दिया। वह स्वयं असुर पुरोहितकी कन्या प्रेममें फंसा हुआ था। और वहीं नहीं नगरकी कितनीही असुर-सुंदरियाँ उसकी अन्तःपुरचारिणी थीं। अपने आर्यसैनिकोंके लिये भी उसने वैसी ही छूट दे रखी थी। दूसरे आर्य जब अरने लगते, तो दोससे दंगा करवा देता, जिससे कुछ खून-खराबी होती, और आर्य आनेसे रुक जाते। वरुणने सारी बातोंका पूरा पता लगा अपने मित्रके साथ चुपचाप एक दिन सौवीरपुर के लिये प्रस्थान किया। सौवीरपुरमें उसने जन-नायकोंको बतलाया; सुमित्र अपनी शक्तिको इतना इढ़कर चुका है, कि अब हमें असुरपुरके आर्यभटों ही नहीं, असुरोंकी शकिसे भी मुकाबिला करना पड़ेगा, इसके लिये तैयारी करके हमें असली बात लोगोंको बतलानी होगी । वरुण नृत्य-अखाड़ेका दुलारा था, और वर्षोंसे पतियोंको मुख ने देख पानेवाली आर्य-स्त्रियाँ जब इस सुंदर नर्तककै मुहसे एकान्तमें अपने पतियोंकी कर्ततको सुनतीं, तो उन्हें पूरा विश्वास हो जाता ।