पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/९७

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वोल्गासे गंगा बढ़ चुका है। स्वयं सौवीरपुरमें सुमित्रके समर्थक बहुत कम थे, किन्तु दक्षिण सौवीरमें अन्तिम असुर दुर्गवैसक सुमित्रका पक्ष लेनेवाले आर्य ज्यादा मैं । इस अन्तिम दुर्गाके पतनके समय सेनापति सुमित्रने असुर नागरिकों पर आवश्यकतासे अधिक दया दिखलाई थी, उस वक्त वरुण इसके लिये सुमित्रका भारी प्रशंसक बन गया था। किन्तु अब उसे मालूम हो रहा था, कि यह सब सुमित्रकी चाल थी। वह समझता था, इस पराजयके वाद असर फिर आर्योंके विरुद्ध खड़े नहीं हो सकेंगे, और इसे दया-प्रदर्शनसे सागरपारके सार्थवाह असुरोकी सम्पत्ति और शक्तिका उपयोग हम अपने व्यक्तिगत लाभके लिये कर सकेंगे ।। | सुमित्र अब भी सेना को लिये हुये सागरतीरकै असुरपुरमें बैठा था, और बनावटी युद्धोंके बहाने वहाँसे लौटनैका नाम नहीं लेता था। वरुण पहिले जनके साधारण नायकॉस मिला, उनका सुमित्रकी बातें। स्पष्ट नहीं मालूम थीं। वह समझते थे, व्यक्तिगत द्वेषके कारण कुछ जननायक सुभित्रका विरोध कररहे हैं । फिर जब वह उन प्रधान नायकोंसे मिला, जिनपर जनके शासनका भरि था, तो उन्होंने सारी बात बतलाई, किन्तु साथ ही यह भी कहा कि सुमित्रकी बुरी नीयत हमारे लिये बिल्कुल साफ होनेपर भी जनके साधारण लोगों के लिये साफ नहीं हैं, क्योंकि इसे वह दूसरे ही अर्थमे लेते हैं। | असुरपुरके विजयमें वरुण सुमित्रका उपनायक था, इसलिये, यद्यपि उस बातको बीते अब नौ साल हो गये थे, तो भी लोगों में उसके खड्गको प्रशंसा बंद नहीं हुई थी। वरुणने जनको समझानेसे पहिले चाहा कि सुमित्रके बारे में खुद जाकर पता लगाये । इसी अभिप्रायसे एक दिन दोनों मित्र दक्षिण सौवीरके लिथै नौकापर सवार हुये। उन्होंने गाधार-व्यापारियों जैसा बाना बनाया। असुरपुरके देखनेसे. मालुम होता था, वह. सचमुच ही आयेंका नहीं असुरोका पुर है। उसकी पण्य-वौथियोंमें बड़े-बड़े असुर-सागर-वणिककै महल और देश-विदेशकी पण्य-वस्तुयें थीं। कितने ही असुर सामन्त-परिवार भी अपने मुहल्लों