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५ काम करनेवा (आर्यो । र कमैकरॉल अगिरी प्रलोभन हो सकता है, इन दोनो मनोवृत्तियों का संघर्ष जरूर होकर रहेगा, और जिस जनपद में असुरोंकी संख्या जितनी ही अधिक होगी, वहाँ इस संघर्षकी और ज्यादा संभावना है; क्योंकि वहाँ पराजित असुर आर्येकी भीतरी फुटसे फायदा उठाना चाहेंगे ।। आठ वर्ष रहने के बाद सौवीरपुर (रोरुक, रोडी) की खबरोंको और चिन्ताजनक सुन वरुणको गंधारपुर छोड़ना पड़ा। आवसथके प्रथम साथी पालमाद्रनै उसका साथ दिया । आँधारकी सीमा पारकर वह नमककी पहाड़ियोंवाले सिन्धु जनपद में प्रवृष्ट हुये नमककी खानों में काम करनेवाले अब भी असुर व्यापारी और श्रमिक ज्यादा थे, जिसका असर पीतकेशों (आय) पर भी बुरा पड़ा था। उनमें ज्यादा आलस्य था, वह अपने काम को अनार्य कर्मकसे कराना ज्यादा पसद करते थे, और समझते थे, कि हमारा काम थोड़ेपर चढ़ना और तलवार चलाना है। अनार्यों के सामने असुर राजाओं जैसी हैकड़ी दिखलाने वाले आर्य राजसत्ता अंकुरित करने के लिये अच्छे क्षेत्र थे। लेकिन, नमक की पहाडियोंको पार करनेपर सौवीरोंका प्रथम-स्थान (मूलस्थान, मुल्तान ) जब आया, तो अवस्था कुछ अच्छी पाई । यहाँकै निवासी सारे ही आर्य थे, और उनके लिये यह तारीफकी बात थी, किं यहाँकी भीषण गर्मी (वरुण और पाल गर्मीकी ऋतु हीमें यात्राकर रहे थे, यद्यपि सिन्धुमे नावसे चलने के कारण मार्गका कष्ट कम था ) को बर्दाश्तकर भी इस जनपदुको आर्य बनाये हुये थे। | सौवीरपुर ( रोरुक, रोडी ) में गर्मीका क्या पूछना था, खासकर गोधरपुर और उसकी पहाडियोंसे होकर आनेके कारण उन्हें वह गर्मी ज्यादा परेशानकर रही थी। आर्यों में अभी लिखनेका संकेत (लिपि) नहीं प्रचलित हुआ था, इसीलिये जब तब सौवीर के सार्यों द्वारा वरुणने अपने मित्रोंको जो सदेश मेजा था, वह पूरा नहीं पहुँच सकता था। इस वक्त कितनी ही बार उसे असुरोको लिपिका ख्याल आया था। सौवीरपुरमे पहुँचनेपर उसे मालूम होगया, कि मामला बहुत दूर तक