पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/९५

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वीलासै गगा पर देवता हैं। मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई, जब सुना कि शिवि—सौवीरानै इन्द्र पदको हटा दिया । यद्यपि इन्द्रको आर्यों में वह स्थान कमी नहीं मिला, जो कि असुर राजाको प्राप्त था—इन्द्र जनद्वारा चुना एक बड़ा योद्धा मात्र था, वह जनपर शासन करनेका कोई अधिकार नहीं रखता था । तो भी इस पदसे खतरा था, और कुछ लोगोंने उसकी आड़में आर्यों में राजप्रथा कायम करनेका प्रयत्न क्रिया भी । आर्य यदि अपने आर्यत्वको कायम रखना चाहते हैं, तो उन्हें किसी आदमीको राजा जैसा अधिकार नहीं देना चाहिये । आर्योंमें असुरोंके धर्मके प्रतिं , भारी बृणा है, इसमें शक नहीं; किन्तु, जिस दिन आर्योंमें राजा बनेगा, उसी दिन असुरों जैसा पुरोहित भी आ जायेगा, और फिर अर्थत्वको हुवा ही समझो । जनके परिश्रमपर राजा भौन करेगा, और देवताओंकी अहयिता दिलानेके लिये वह पुरोहितको रिश्वत देकर अपनी ओर मिला लेगा, इस प्रकार राजा और पुरोहित मिल जनको अपना दास वना छोडगे । हमें, आर्यों की पुरानी प्रथाको बड़ी दृढ़ताके साथ पकड़े रहना होगा, और जहाँ भी कोई आर्य जन उससे हिंगे, उसे आर्योंकी जमातसे खारिज कर देना होगा | सौवीरके दक्षिणी भाग ( कराचौके आसपास ) से इधर कितनी ही चिन्ताजनक खबरें वरुणको मिल रही थीं, जिनसे मालूम होता था, कि अन्तिम असुर-दुर्गॐ पराजयके साथ आर्यों के भीतर भारी कलह उठ खड़ा होना चाहता है। वरुणने अपने गुरुॐ साथ सौवीरकी समस्यापर कई बार हर पलूसे विचार किया था । ऋषि अंगिराकी कहना था, किं चाहे यह कलह पहले सौवीर में पैदा हुई हों, किन्तु इसके भीतरसे सारे आर्य-जनों को गुजरना पड़ेगा। झार्य सदासे व्यक्तिके ऊपर जनकै शासनको मानते आये हैं, उधर असुरोंकी निरंकुश राजसत्ताको देखकर कितने ही आर्वनेताको अधिकार और भोगका