पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/९३

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बोल्पासे गंगा बिल्कल गलत है, और करना तो और भी असंभव है। वहुतटके आर्यों में जब पहिले-पहिल पत्थरके हथियारोंकी जगह ताँचेका हथियार प्रचरित होने लगा, तो कितनोंने इस नवीन चीजका विरोध किया था। | ऋषिके प्रिय शिष्य वरुणने पूछा-पत्थरके हथियारों से कैसे काम चलता होगा ?" | "आज वत्स ! ताँबेके हथियारोसे काम चलरहा है, कल इससे भी तीक्ष्ण कोई हथियार निकल आयेगा, फिर लोग सवाल करेंगे--- ताँबेके हथियारसे कैसे काम चलता होगा । जो हथियार जिस वक्त प्राप्य होता है, आदमी उससे काम चला लेता है। अब पाषाणके कुल्हाड़ेसे लड़ाइयाँ लड़ी जाती थीं, तो दोनों पक्षके भटके पास पाषाणके ही कुल्हाड़े होते थे ; जैसे ही एक पक्षके पास ताँबेका कुल्हाड़ा आया, वैसे ही दूसरे पक्षको भी पाषाण छोड़ तबैका कुल्हाड़ी हाथमें लेना पड़ा; यदि वह ऐसा न करता तो संसारमे जीनेके लिये उसे स्थान न मिलवा । इसीलिये मैंने कहा, सभी नवीन बातोंको त्याज्य कहना गलत है। यदि मैं नवीनका विरोधी होता, तो इतने सुदर घोड़े, इतनी सुदर गायें न पैदा कर सकता। मैंने देखा अच्छे घोड़े-घोड़ियोंके अच्छे बछेड़े होते हैं। मैंने कुछ अच्छे अच्छे घोड़े-घोड़ियोंको चुना, और आज पैंतीस वर्ष बाद इस वक्त तुम अंगिराकै घोड़ोंकी इस नसलको देखते हो। असुर खेतोंकी खादका अच्छा प्रबंध करते थे, वह पहाड़ी नदियोंसे नहर निकालकर सिंचाई करते थे। हमने गंधारमें इन बातौंको स्वीकृत किया। उनके शहर बसानेके तरीके, चिकित्सा के कितने ही ढग बहुत अच्छे थे, हमने उन्हें ले लिया है। आहार, परिधान, जीवनरक्षा के लिये उपयोगी जितनी भी चीजें मिलें, उन्हें स्वीकार करना चाहियै, इसका ख्याल किये बिना कि वह पुरानी हैं या नई, आयसे आई हैं या अनार्यों से। सुवास्तुमें और उससे पहले आर्य कपासकै वस्त्रका नाम भी नहीं जानते थे, किन्तु यहाँ हमलोग उसे पहनते हैं । गर्मियोंमें वह सुखद होता है।