पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/९०

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अगिरा को देखते ही अनार्य भाग खड़े होते हैं, किन्तु वह रातको हमारी बस्तियों पर छापा मारते हैं, जिसके लिये हमें अकसर उनके साथ बहुत क्रूर बनना पड़ता है, इससे असुरों ( शंबर) कोलोंके गाँव गाँव खाली हो गये हैं-वह पूरबकी ओर भागते जारहे हैं ।” “तो तेरे यहाँ पाल ! असुरोंके चाल-व्यवहारके पकड़नेका डर नहीं है । “मद्र३ जनमें नहीं, और शायद यही बात मल्लकी भी है। आगेकी नहीं कहता। हमारे यहाँ वस्तुतः अनार्यं सिर्फ जंगलोंमें रह गये हैं। दोनों मित्रोंका वार्तालाप अंधेरा होनेतक चलता रहा ; और यदि अवस्य-रक्षिकाने आकर खान-पानके बारे में न पूछा होता, तो शायद अभी वह खतम भी न होता । आवसथ ग्रामकी ओरसे बनाया गया या, जिसमें सभी यात्रियों—इसे कहनेकी आवश्यकता नहीं, कि पीतकेशों के ठहरनेका प्रबंध था, और जिनके पास खाना नहीं होता, उन्हें आवसथकी ओरसे सत्तू, गोमास-स्प मिलता । सामान या बदलेकी चीज दे देनेपन अवस्थ-रक्षिका भोजन बना देती। सोम और सुराकै लिये यह आवसथ बहुत प्रसिद्ध था। वरुण और पालने आगमै भुने गोमांस और सुरासे अपनी मित्रताको मजबूत किया । ऋषि अगिरा सिंधुके पूर्ववाले गंधारजनके ऊँचेसे ऊँचे पद जनपति तक रह चुके थे। यद्यपि पुष्कलावती (चारसह से प्रथम पुश्तके बाद असुर लोग इटने लगे थे, और जब दूसरी पीढ़ीमें कुनार तटसे किर गधार जनकी एक शाखाने पश्चिमी गंधारको पराजित कर लिया, तो मरनेसे बेचे हुये असुर बड़ी तेजीसे पश्चिमी गंधारको खाली करने लगे । उससे तीस साल बाद ही सिन्धुके पूरबकी भूमिपर गधार और मद्रजनोंकी हमला हुआ, और वितस्ता ( झेलम ) और सिंधुकै बीचकी भूमिको गंधारों, तथा वितस्ता और इरावती ( रावी )