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अंगिरा
- सहायता करते हैं'
"कुल, परिवारके ख्यालसे । इसीलिये सौवीर-जनने १ किया, कि अब कोई इन्द्र नहीं बनाया जायेगा । इन्द्र अशनि (विजली)-इस्त देवता का नाम भी है, जिससे लोगों में भय फैलनेको डर है ।" “अच्छा किया सौवीर-जनने मित्र ] “लेकिन, कितने ही आर्यों नाम लजानेवाले पैदा हो गये हैं, जो असुरोको हर वातकी प्रशंसा करते नहीं थकते। उनकी कितनी ही प्रशसनीय वाते हैं, जिनकी मैं प्रशंसा करता हूँ, उन्हें हमें लेना चाहिये । उनके हथियारों को हमने अपनाया। उनके वृषभ-रयोंकी देखा-देखी हमारे मधवा इन्दने अश्वरथ बनाये । धनुर्धरके लिए घोड़ेपरसे अधिक सुभीता रथमें होता है । वह वह जितना चाहे उतने तरकश रख सकता है, शत्रुके तीरोंसे बचनेके लिये आवरण भी रख सकता है। उनके कवच, शक्ति, गदा आदिसे हमने बहुत-सा सीखा। उनके नगरोसे भी हम बहुतसी बाते ले रहे हैं। उनकी सागर-यात्राको भी इमैं सीखना चाहिये, क्योंकि लौह (ताँबा ), दूसरे धातु, रत्न और बहुतसी चीजे सागरपार से आती हैं, अभी भी यह सारा व्यापार असुर-व्यापारियोंके हाथमें है। यदि हम उनसे स्वतंत्र होना चाहते हैं, तो सागर-नौचालन सीखना होगा ।, किन्तु असुरोंकी बहुत सी बातें हैं, जिनको हमें घातक समझना चाहिये । जैसे शिश्न-पूजा ।। "लैकिन, शिश्न-पूजाको कौन आर्य पसंद करेगा है ।
- मत कह मित्र ! कितने ही आर्य कहरहे हैं, कि असुरोंकी भाँति हमें भी अपने पुरोहित बनाने चाहिये। हमारे यहाँ योद्धा, पुरोहित, व्यापारी, कृषक, शिल्पीका भेद नहीं । सब सभी काम इच्छानुसार कर सकते हैं, किन्तु असुरोंने अलग-अलग श्रेणियाँ बना रखी हैं । आज आर्यों में पुरोहित बन जाने दो और देखेगे, कुछ ही वर्षोंमें शिश्न( लिंग ) पूजा भी शुरू हो जायेगी । 'असुर-पुरोहित बहुत मक्कार होते हैं, लाभ-लोभके लिये आर्य-पुरोहित भी वही करने लगेंगे ।