पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/८७

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वोलासे गंगा मालूम थी । अब हमारे आर्य उन चीन्होको सीखरहे हैं, किन्तु, वर्षों लगानेपर भी उनका सीखना पूरा नहीं होता । “तब, जरूर असुर हमसे अधिक चतुर थे ।' और उनके लोहारों, दस्तकारों, कुम्भकारों, रथकारों, बंशकारों, कर्मकारों, तन्तुकारोंके हाथकी कारीगरीको तो हम सब देखते ही रहते हैं। फिर असुरों के अधिक चतुर होने में सन्देह क्या हो सकता है ? और तूने कहा, कि असुर वीरभी होते हैं।" हाँ, किन्तु उनकी संख्या बहुत कम है। आर्यों की तरह उनका इर एक बच्चा दूध छोड़ते ही तलवारसे नहीं खेलता। उनके यहाँ योद्धा की अलग श्रेणी है, शिल्पियों, व्यापारियोंकी अलग, और दासकी अलग । योद्धा श्रेणी को छोड़ दूसरे युद्ध-विद्या नहीं सीखते, उन्हें योद्धा बहुत नीची निगाहसे देखते हैं। और दास-दासियोंकी अवस्था तो पशुसे भी बदतर है। उन्हें खरीदते बेचते ही नहीं हैं, बल्कि वह उनके शरीर माणसे मनमानी कर सकते हैं ।। उनमें योद्धा कितने होंगे ? | "सौमै एकसे भी कम, और दास-दासी सौमें चालीस, अर्धदास सौमें चालीस---शिल्पी और किसान अर्धदास हैं। और सौमें दस व्यापारी, बाकी दूसरे ।” "तभी तो असुर आर्यों से हार गर्थे । "हाँ, उनकी हरमें यह एक प्रधान कारण था, । और एक बड़ा कारण था, उनका राजाको सारे जनके ऊपर देवता मान लेना ।

  • इसे तो हम आये कभी नहीं मान सकते ।”
  • इसीलिये हमें इन्द्रका पद तोड़ना पड़ा। मथबाके बदके किसीं, इन्द्रकी बात है, उसने चाहा असुर-राजा जैसा बनना ।”

असुर-राला जैसा ! आर्य-जनके साथ मनमानी करना lly हाँ ! और वही एक नही, उसके बाद दूसरे ने, फिर इस बात में कुछ आर्य भी उनकी सहायता करते पकड़े गये ।