पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/८६

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अंगिरा रसोई घर, आगनमे ईटका कुआँ, स्नानागार, शयनागार, कोष्ठागार । साधारण बनियोंके घरोंको मैंने दो-दो, तीन-तीन तलके देखे हैं। क्या बखान करू, असुरपुरकी उपमा मै सिर्फ देवपुर से ही दे सकता हूँ। पूरबमे भी असुरोके नगर हैं, किन्तु हम मद्रोंकी ( स्यालकोट वाली । भूमिसे वह बहुत आगे है।" "मैंने देखा है मित्र ! और ऐसे नगरोंके वसाने, बनानेवाले हमसे अधिक चतुर थे, इसे हमे मानना पड़ेगा । सागरके वारेमें तो नहीं सुना होगा १५ नाम सुना है ।

  • सिर्फ नाम सुनने या वर्णन करनेसे अन्दाज़ा नहीं लग सकता। सागरके तटपर खड़े होकर देखनेसे कुछ कुछ पता लगता है। सामने ऊपर नील जल नीले आकाशसे मिला हुआ है।”

“आकाशले मिला हुआ, वरुण 19 हाँ, जितना ही आगे देखें, जल ताड़ों ऊपर उठ्ता चला गया है, और अन्तमें जाकर आकाशसे मिल जाता है। दोनों का रंग भी एकसा होता है-हो, सागर-जल अधिक नीला होता है। और इस अपार सागरमें असुर अपनी विशाल नौकाओंकों निर्भय होकर चलाते । वर्षों महीनोंके रास्ते जाते, और सागरसे नाना प्रकार के रत्न लाते हैं । असुरोंके साहस और चतुराईको यह भी एक नमूना है। यही नहीं, एक बात तो तूने सुनी भी न होगी मित्र ! असुर विना मुंहसे बोले बात-चीतकर सकते हैं । बिना बोले ! क्या कहा मित्र ? “हाँ बिना बोले । मिट्टी, पत्थर, चमड़ेको दे दो, एक असुर उस पर कुछ चीन्हा खींच देगा, और दूसरी सारी बात समझ लेगा। जितना हम दो घंटा बात करके नहीं समझा सकते, उतना वह पाँच-दस चीन्होंको खींचकर बतला सकते हैं। यह बात आर्यों को कभी नहीं