पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/८१

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•६०' वोगासे गंगा और खच्चोंके सामने वह देर तक न ठहर सके; लेकिन आर्य-बुल उन्हें सिर्फ पराजित करके नहीं छोड़ना चाहता था। वह इन निर्वास, काले असुरोंको बतलाना चाहता था कि पीत-कैशियों पर नज़र डालना कितने खतरे की बात है। असुर-सेनाको भागते देख पुरुषानने सार्थको सूचना, मैजी, और अपने सवारोंको ले पुष्कलावती पर आ पड़ा। असुर सैनिको की भाँति उनका नगराधिपति भी इसकी आशा नहीं रखता था | असुर अपनी पूरी शक्तिको इस्तेमाल करने का मौका नहीं पा सके, और आसानीसे असुर-दुर्ग तथा नगराधिपति पीत-केशके हाथ में आ गये । पीत-केश असुरोंके इस विश्वासघातसे बहुत उत्तेजित थे। उन्होंने बड़ी निर्दयता-यूर्वक असुर-पुरुषों का वध किया । नगराधिपतिको तो नगरके चौरास्ते पर लेजा असुर-अलाके सामने एक-एक अंग काटकर मारा । उन्होंने स्त्रियों, बच्चों और व्यापारियों को नहीं मारी यदि उस वक्त दास. बनानेकी इच्छा होती, तो सम्भव है पीत-कैश ( आर्य ) इतना अधिक वध न करते । पुष्कलावतीके बहुत से भागको उन्होंने आग लगाकर जला डाला। यह प्रथम असुर-दुर्ग का पतन था। । असुरों और पति-केशोंके महान् विग्रह-देवासुर-संग्राम–को इस प्रकार प्रारम्भ हुआ। .' पुरधानने लौटकर अजा दरें में एकत्रित असुर सैनिकों को खतम किया, और फिर सारे पीत-केश सार्थ अपनी-अपनी नन-भूमियोंको चले गये । कई सालोंके लिए पुष्कलावतीको व्यापार मारा गया । पीत-केशोंने असुर-पण्यको तेनेसे इन्कार किया; किन्तु ताँवे-पीतलका बहिष्कार वह कितनी देर तक कर सकते थे । | " आजसे एक सौ साठ पीढ़ी पहले आर्य (देव)-असुर संघर्ष हुआ था, उसीकी यह कहानी है। आय के इस पहाड़ी समाजमें दासता स्वीकृत नहीं हुई थी । लॉबे-पीततके हथियारों और व्यापारका जोर बढ़ चला था ।