पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/८०

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पुरुधान ७९. जिनके पास अच्छे हथियारोंकी कमी थी, उन्होंने नये हथियार खरीदे। बेचनेके लिए लाये घोड़े तथा दूसरे भारी गट्ठर उनके बिक चुके थे, सिर्फ अपने चढ़नेके घोड़े तथा ख़रीदे सामान-आभूषण, धातुको दूसरी चीजे-हल्के थे; इसलिए इस ओरसे उनको कम चिन्ता थी। स्वातकी आर्य-स्त्रियोंमे आभूषण-शृंगारका शौक बढ़ रहा था, किन्तु अभी तक उनकी तरुणाई की शिक्षामै गीत-नृत्यके साथ शस्त्र-शिक्षा भी शामिल थी, एसलिए सकटकी खबर सुनते ही उन्होंने भी अपने-अपने खड्स और चर्म ( ढाल ) संभाल लिये। पुरुधान को पता था कि असुर भट सीमान्तके पहाड़ी दरें पर आगे से रास्ता रोककर हमला करेंगे, और उसी वक्त उनकी एक बड़ी टुकड़ी पीछेसे भी घेरना चाहेगी । इसके लिए पुरुधानने पूरी तैयारी करली थी, जो कि पहले खबरके मिल जानेसे ही सम्भव हुई । वैसे होता, तो पंजौरा, कुनार और स्वातके सार्थ अलग-अलग बिना एक-दूसरे को ' खयाल किये चल देते; किन्तु अब सब तैयार थे । यद्यपि शत्रुको पता न लगने देनेके लिए उन्होंने पुष्कलावतीसे एक-दो दिन आगे-पीछे कूच किया था; किन्तु बात तय हो चुकी थी, कि अब्ज़ा (अबान्नई) के द्वार पर सभी एक समय पहुँचेगे। जब द्वार ( दर्रा ) कोस-दो-कोस रह गया, तो पुरुधानने पच्चीस शवासर पहले मैजे । आने-जाने की तरह जिस वक्त सवार द्वारके भीतर बढने लगे, उसी वक्त असुरोंने उन पर वाण छोड़ने शुरू किये। आक्रमण की बात सच निकली | सवार पीछे हट आये, और उन्होंने अपने सार्थनायक को खबर दी । पुरुधान ने पहले पीछे आनेवाले शत्रुओंसे निबटना चाहा । इसमें सुभीता भी 7 था; क्योंकि यद्यपि असुर हर साल आय से इज़ारों की संख्यामै घोड़े खरीद रहे थे, किन्तु अभी वह चुस्त सैनिक गुड़सवार नहीं बन सके थे । सार्थ रुक गया, और रक्षा के लिए कितने हो भटोको वहाँ छोड़ . बाकी सवारोंके साथ पुरुधान पीछे मुड़ा । असुर-सेनाको आशा न थी, कि पीत-केश एकाएक उन पर आ पड़े गें। पीत-केशोंके लम्बे भालों