पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
निशा


तरुणी बैठ गई, और उसने अग्नि के मुँह में अपने कोमल स्तनों को दे दिया। अगिन अपने दोनों हाथों से पकड़े स्तन को पीने लगा। इसी समय दूसरी नग्न तरुणी भी रोचना को लिए पास आकर बैठ गई। उनके चेहरोंको देखनेसे ही पता लग जाता था कि दोनों बहने हैं।

गुहा मे उन्हे निभृत बातचीत करते छोड़ हम बाहर आ देखते हैं,बर्फपर चमड़े से ढके बहुत-से पैर एक दिशा की ओर जा रहे हैं। चलो उन्हे पकड़े हुए जल्दी-जल्दी चले।अभी वह पद-पंक्कि तिरछी हो पार वाली पहाड़ी के जगल मे पहुॅची ! हम तेज़ी से दौड़ते हुए बढ़ते जा रहे है, किन्तु ताज़ी पद-पंक्ति खतम होने की नही रही है। हम कभी श्वेत हिम क्षेत्र मे चलते हैं, कभी जंगल मे हो पहाड़ी की रीढ़ को पारकर दूसरे हिम-क्षेत्र, दूसरे पार्वत्य वनको लाँधते हुए बढ़ते हैं। आखिर नीचे की ओर एक वृक्ष हीन पहाड़ी की रीढ़ पर हमारी नजर पड़ी। वहाँ नीचे से उठती श्वेत हिमराशि नील नभ से मिल रही है, और उस नील नभ में अपने को प्रक्रित करती हुई कितनी ही मानव-मूर्तियाँ पर्वत-पृष्ठकी आड़ में लुप्त हो रही है। उनके पीछे नील आकाश न होता तो निश्च ही हम उन्हे न देख पाते। उनके शरीर पर हिम जैसा श्वेत वृष- चर्म है। उनके हाथों में हथियार भी सफेद रंग से रंगे मालूम होते हैं। फिर,महान् श्वेत हिम क्षेत्र मे उनकी हिलती हुलती मूर्तियों को भी कैसे पहचाना,जा सकता है?

और पास जाकर देखे। सबसे आगे सुपुष्ट शरीर की एक स्त्री है।आयु चालीस और पचास के बीच होगी। उसकी खुली दाहिनी भुजा को,देखने से ही पता लगता है कि वह बहुत बलिष्ठ स्त्री है। उसके केश,चेहरे, अंग-प्रत्यग गुहा की पूर्वोक्त दोनों तरुणियों के समान किन्तु बड़े हैं। उसके बायें हाथ में तीन हाथ लंबी भुर्ज की मोटी नोकदार लकड़ी है। दाहने मे चमड़े की रस्सी से लकड़ी के बेट मे बॅधा घिसकर तेज़ किया हुआ पाषण-परशु है। उसके पीछे-पीछे चार मर्द और दो स्त्रियाँ