पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/७९

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वोंगासै गंगा दाखिल किया था, जिसके लिए आर्य-जनमें बहुत उत्तेजना फैली हुई थी। खैरियत यही थी, कि असुर राजधानी सीमान्तसे बहुत दूर थी और वहाँ तक श्रर्यों का पहुँचना अभी नहीं होता था, इसलिए लोग आर्य स्त्रियोंकी बातको दन्तकथा समझते थे। पुष्कलावतीके बाज़ारोंसे तरह-तरहके आभूषण, कापस वस्त्र, अस्त्र शस्त्र और दूसरी चीजें, सुवास्तु क्या कुनारके ऊपरले काँटेके खानाबदोशों के झोपड़ों तक पहुँचने लगी थी। सुवास्तुको स्वर्ण-केशी सुन्दरियाँ तो चतुर असुर शिल्पियोंके हाथके बने आभूषणोंपर मुग्ध थीं; इसलिए सार्थ के साथ हर साल अधिक-से-अधिक अार्य स्त्रियाँ पुष्कलावती ने लगी थीं । सुमेध बेचारा सचमुच उषाको विधवाकर चल असा था, और अब वह अपने चचेरे चैवर पुरुधानकी पत्नी थी। इस साल बद्द भी पुष्कलावती आई थी । पुष्कलावतीके नगराधिपतिके आदमियोंने पीत केशकै सबुके भीतर बहुत-सी सुन्दरियों को देख, इसकी खबर अपने स्वामीको दी, और उसने तै किया था, कि जब सार्थ लौटने लगे, तो पहाड़ (अबाजई) में घुसते ही हमला करके उसे लूट लिया जाय । यद्यपि यह काम बुद्धिहीनता का था, क्योंकि पीत-केश कितने लड़ाके होते हैं, इसका पता उसे था; किन्तु नगराधिपतिमें बुद्धिकी गंध तक न थी । नगरके बड़े-बड़े सेठ-साहूकार उससे घृणा करते थे। जिस व्यापारी से पुरुधानको मित्रता थी, उसकी सुन्दरी कन्याको हाल ही में नगराधिपतिनै जबर्दस्ती अपने घर में रख लिया था, जिसके लिए वह उसका जानी दुश्मन बन गया था । उषा भी असुर सौदागरके घर कई बार गई थी। यद्यपि वह सौदागर पत्नीको एक बात को भी नहीं समझती थी; किन्तु पुरुधानके दुभाषियापन तथा सेवनीके व्यवहार के कारण दोनों आर्यअसुर नारियोंमें सखित्व कायम हो गया था। प्रस्थान करनेसे दो दिन पहले सौदागरने अपने भारी ग्राहक पुरुधानकी दावतकी, उस वक्त उसने पुरुधानके कानमें नगराधिपतिके नीच इरादेकी बात कह दी। उसी रात पुरुषानने सारे आर्य सार्थ नायकोंको बुझाकर परामर्श किया ।