पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/७८

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पुरुधान ७७ थी । यद्यपिं वही स्वात नदी पुष्कलावतीके पास भी बह रही थी; किन्तु वह देखते थे, उसके जलमें वह स्वाद नहीं है। उनका कहना था, असुरोंका हाथ लगनेसे ही वह पवित्र जल कलुषित हो गया है। कुछ भी हो आर्य असुरोको किसी तरह भी अपने बराबर माननेके लिए तैयार नहीं थे; खासकर जब कि उन्होंने उनके हजारों दास-दासियों, और कोपर बैठकर अपने शरीरको बेचनेवाली वेश्याओं को देखा। लेकिन व्यक्तिके तौर पर आर्यों के असुरों में और असुरोंके आर्यों में कितनेही मित्र पैदाहों गये थे। असुरोका राजा पुष्कलावतीसे दूर सिन्धुतटके किसी नगर में रहता था; इसलिए पुरुषानने उसे नहीं देखा था। हाँ, राजाके स्थानीय अफसरकों उसने देखा था । वह नाटा, मोटा और भारी आलसी था, सुराके मारे उसकी मोटी पपनियाँ सदा मुंदी रहा करती थीं । उसके सारे शरीर में दर्जनों रूपे-सोनेके आभूषण थे। कानों को फाड़कर उसने कन्धे तक लटका लिया था । यह अफसर पुरुधानकी इष्टिमे कुरूपता और बुद्धिहीनताका नमूना था। जिस राज्यका ऐसा प्रतिनिधि हो, उसके प्रति पुरुधान-जैसे आदमीकी अच्छी सम्मति नहीं हो सकती थी । पुरुधानने सुना था कि वह असुर राजाका साला है, और इसी एक गुणके कारण वह इसपद पर पहुँचा है। कई सालके अस्थायी सहवासके कारण पुरुधानको असुर-समाजके भीतरकी बहुत-सी निर्बलताएँ मालूमहो गई थी । उच्च वर्गके असुर चाहे चतुर जितने हों; किन्तु उनमे कायर अधिक पाये जाते हैं । वह अपने अधीनस्थ भटों और दासोंके वलपर शत्रुसे मुकाबला करना चाहते हैं, जिसमे निर्बल शत्रुपर विजय प्राप्त करने में भले ही सफलता प्राप्त हो, किन्तु बलवान् शत्रुके सामने ऐसी सेना ठहर नहीं सकती । असुरोके शासक-राजा, सामन्त-अपने जीवनका एक मात्र उद्देश्य भोगविलास समझते थे। हरेक सामन्तकी सैकड़ों स्त्रियाँ और दासियाँ होतीं थीं । स्त्रियों को भी वह दासियोंकी भाँति रखते थे । हालमें असुर राजाने कुछ पहाड़ी ( अर्यं) स्त्रियोंको भी बलात् अपने रनिवासमै