पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/७६

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७५ पुरधान भर गया । सभी अपने सुन्दरतम वस्त्रों और आभूषणोंमे थे । स्त्रियों शरीरमें रंगीन सूक्ष्म कम्बल दाहिने कन्धे पर तवैके कामदार भिन्न रंग के कमरबन्दसे बँधा हुआ था, जिसके भीतर सुन्दर केचुक था | कानों में अधिकाशके सोनेके कुंडल थे। बसन्त समाप्त हो रहा था, उपत्यकामे बहुत तरहके फूल, मानो आजके लिए ही फूले हुए थे। तरुण-तरुणियों ने अपने लम्बे केशको उनसे खूब संवारा था और आज इन्द्रोत्सवमे उन्हें स्वच्छन्द प्रणयका पूरा अधिकार था। शामको जब बनी-उनी उषा पुरुधानके हाथको अपने हाथमें लिये घूम रही थी, तो सुमेधकी नजर उनपर पड़ी। उसने मुह फेर लिया । क्या करता वेचारा । इन्द्रोत्सवके दिन गुस्सा भी नहीं कर सकता था। पिछले ही साल इसके लिए जनपति नै उसे फटकारा था। | आज सचमुच मधु-क्षीर मिश्रित सोम ( भग) रसकी नदियाँ बह रही थीं। गाँव गाँवके लोगों की ओरसे बछड़े या बेहदकै स्वादिष्ट मसि और सोमरसके घट कर रखे हुए थे। अभिनव प्रणय तरुणतरुणियोंका हर जगह यह स्वागत था। वह मास-खण्डमे मुंह डालते, सोमका प्याला पीते, इच्छा होनेपर बाजे–जो बजते या हरवत्व बजने के लिए तैयार रहते थे—पर कुछ नाचते, और फिर दूसरे आमके स्वागत स्थानको चल देते । सारे जनकी औरसे बड़े पैमाने पर तैयारी की गई थी, यहाँका नाचनेका अखाड़ा भी बहुत बड़ा था। | इन्द्रोत्सव मुख्यतः तरुणका त्योहार था। इस एक दिन-रातके लिए तरुण सारे बन्धनसे मुक्त हो जाते थे। ऊपरी स्वातका यह भाग पशुधान्यसे परिपूर्ण है, इसीलिए यहाँकै लोग बहुत सुखी और समृद्ध हैं। उनको जिन वस्तुओं का अभाव है, उनमें मुख्य है ताँबा और शौककी चीजोंमें सोना-चाँदी तथा कुछ रस, जिनकी माँग दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है। इन चीजोंके लिए हर साल स्वात और कुभा (काबुल ) नदियोंके संगमपर बसे असुर-नगर