पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/७३

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बोलासे गंगा उन्हें दास कहते हैं । दासों औरथामियोंकी सूरत-शकलमे क्या कुछ अंन्तर होता है । नहीं । हाँ, दास बहुत गरीब परंतन्त्र होते हैं उनका तैन-आण स्वामीके हाथमे होता है। । 'इन्द्र हमारी रक्षा करे, ऐसे लोगों का मुंह देखनेको न मिले ।” । "और मित्र सुमेध ! अबभी तुम्हारा तकला चल रहा है। येशमें नहीं चलना है ? चलना क्यों नहीं है, इन्द्रकी कृपासे”पीवर पशु और मधुर सोम मिलता है। उसी इन्द्रकी पूजामे कौन अभागा है, जो न शामिल होगा ? | और तुम्हारी गृहपतीका क्या हाल है, आजकलतो अखाड़ेभे उसको पता ही नहीं चलता है । *चसक गये हो क्या पुरुषान १ वसकनेका सवालही क्या है ? तुमनेतो सुमेध जान-बूझकर बुढापे* में तरुणीसे प्रणय करना चहा ।" “पचास बुढ़ापा नहीं आता ।। लेकिन, पचास और बीसमें कितनी अन्तर होता है । *तो उसने उसी दिन इन्कारकर दिया होता है । "उस दिनतो दाढ़ी-मैंछ मुड़ाकर अमरह वर्षकै बन गये थे, और उषाके माँ-बापकी नजर पचा वर्षपर नहीं, बल्कि तुम्हारे पशुओं पर थी । “छोड़ो इस बातको पुरु ! तुर्म तरुण लोग तो हमेशा | अच्छा छोडता हूँ सुमेध ! देखी बाजा बजने लंगा हैं, यश-आरम्भ होगा । देर कर दोगे तुमै; और गाली. सुनेगा वेंची सुमेध। तो चली उषाक भी थे लेते चलें ।'