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५-रुन देश-ऊपरी स्वात; जाति-हिन्दी आर्य काल-२००० ई० पू० वह सुवास्तुका बाय तट अपने हरे-भरे पर्वतों, बहते चश्मों, दूर तक फैले खेत में लहराते गेहूं के पौधोके कारण अत्यन्त सुन्दर था। किन्तु, आर्यों को सबसे अधिक अभिमान था, अपनी पत्थरकी दीवारों तथा देवदारके पल्लौसे छाई वस्तुओं-धरों-का, तभीतो उन्होंने इस प्रदेशको सुवास्तु (सुन्दर घरोंवाला प्रदेश, स्वात ) नाम दिया। वहुतट पार करते आर्यों ने पामीर और हिन्दुकुशके दुर्गम डाँडों, तथा कुनार, पंजकोरा-जैसी नदियोंको कितनी मुश्किलसे पार किया, इसकी स्मृति शायद उन्हें बहुत दिन तक रही, और क्या जाने आज जो मंगलपुर (मंगलोर) में इन्द्र-पूजाकी भारी तैयारी है, वह इन्हीं दुर्गम पथोंसे सकुशल निकाल लानेवाले अपने इन्द्रकै प्रति कृतज्ञता प्रकट करनेके लिए हो।। आज मंगलपुरके पुरुओंने अपने-अपने सुन्दर गृहोंको देवदारकी -हरी शाखाओं और रग-बिरगी झडयोंसे सजाया है। पुरुधानको एक खास तरहकी लाल झंडियाँ लगाते हुए देख, एकको हाथमे ले उसके पड़ोसी सुमेधने कहा--- “मित्र पुरु ! यह तुम्हारी झंडियाँ बड़ी हल्की और चिकनी हैं । हमारे यहाँतो ऐसे वस्त्र नहीं बनते, यह दूसरीही तरहकी भेड़े होंगी है। यह मेड़ोंका कन नहीं है सुमेध ! तो फिर " "यह ऐसी ऊन है, जो वृक्षपर उगता है। "हमारे यहाँ जैसे मैड़ोंके शरीरपर ऊन उगता है, उसी तरह यह न जंगल में वृक्षपर उगता है।'