पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/६९

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६८ वोल्गासै गंगा किंतु, उस जल्दीम चै चारे पशु-आमको एकत्र न कर सके । इन्द्रकी सेनाने एकके बाद एक पर्श-मको लेते हजारों पशुओंको संहार क्रिया—किसीको बंदी नहीं बनाया । उधर निचले मद्रोंने जब संकटको समझा, तो समय बीत चुका था। आखिरके कुछ गाँवही अब रह गये। थे, जिनके लिए काफी भटौंको छोड़ गुरुहूत इन्द्र कुरु-भूमि में चला आयो । निचले मद्राँनै आक्रमण किया, किंतु उनकी भी वही दशा हुई जो कि पशुओंकी हुई । निचले मद्र और पशु-जनका जो भी पुरुषबाल, वरुण, वृद्ध–उनके हाथ आया, उसे उन्होंने जीवित नहीं छोड़ा-त्रियोंको अपनी स्त्रियोंमें शामिलकर लिया। हाथ आये दासोंमें जिन्होंने अपने देशमें लौट जाना चाहा, उन्हें लौटा दिया है। कुछ निचले मद्र और पशु-स्त्री-पुरुष जान बचाकर बक्ष-उपत्यका छोड़ पश्चिम क्री और चले गये। उन्हींकी संतानें पीछे ईरानके पर्थ ( पर्सियन ) और मद्र (लिडियन) के नामसे प्रसिद्ध हुईं। उनके पूर्वजों पर इन्द्र के नेतृत्वमे जो अत्याचार हुआ था, उसे वे भूल नहीं सकते थे । इसी लिए ईरानी इन्द्रको अपना सबसे ज़बर्दस्त शत्रु मानने लगे। सारी वलु-उपत्यका उत्तर-मद्रों और पुरुओंके हाथ आयी। दोनोंने दाहिने-वाँयें तटको आपसमें बाँट लिया । ववालोंने भरसक कोशिशकी कि नयीको हटाकर पुरानी बातोंकी फिरसे त्यापना करे; किंतु वे ताम्रको छोड़ पत्थरके हथियारोंकी और नहीं लौट सकते थे, और ताम्रके लिए चतुकी पहाड़ी उपत्यकासे बाहर व्यापार-संबंध करना जरूरी था। हाँ, दासताको उन्होंने कभी नहीं स्वीकार किया, और ने बाहरी लोगोंको वहुउपत्यकाका त्थायी निवासी बननेका अधिकार दिया । शताब्दियोंके बाद जब पुरुहूत इन्द्रको भी लोग भूलने लगे थे, या उसे देवता बना चुके थे, तो वंश इतना बढ़ गया कि सबका भरण-पोषण थतु नहीं कर सकती थी, इसलिये उनकी कितनी ही संताने दक्षिणकी ओर बढ़नेके लिए बाध्य हुई ।।