पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/६६

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• मुरहूत ; मद्रों-पर्शको वतु-तटपर रहने देना पाप है पुत्र ! मैं अब ज्यादा दिन तक देखनेके लिए नहीं रहूँगा ।" , | माद्र बाबाकी कहानियाँ बही मनरजक और शिक्षा-प्रद मालूम होती थीं, किन्तु पुरुहूत इतना समझनेको भी शक्ति रखता था कि जो हथियार आ गये हैं, उन्हें छोड़कर मनुष्य तथा पशु-शत्रुओंके बीच जिया नहीं जा सकता ।। तीसरे दिन जब वह विदा होने लगा, तो वृद्धने उसके ललाट और भ्र को चूमकर आशीर्वाद दिया। रोचना उसे दूर तक पहुँचाने गयी, और अलग होते वक्त दोनोने एक दूसरेके गालोंको अश्रु-विदुओंसे प्रक्षालित किया । माद्र बाबाकी बात ठीक हुई, यद्यपि पच्चीस वर्ष बाद निचले मद्र और पशु दिनपर दिन ऊपरवाले पुरुओं और मर्दोको दबाते ही गये । अहाँ इन ऊपरवाले जनों में कपड़ा कंबल बनानेवाले स्वतंत्र स्त्री-पुरुष होते, जिनके खाने कपड़ेपर खर्च ज्यादा पड़ता, जिससे उनके हाथकी बनी वस्तु अच्छी होते भी अधिक मॅहगी पद्धती; वहाँ नीचेके मद्रों और पशुओंके पास दास थे जिनकी बनायी चीजें उतनी अच्छी नहीं होतीं तो भी सस्ती पड़तीं। जब वहाँकै व्यापारी इन सभी चीजोंको बाहरके देशोंमें ऊँट या घोड़े पर लादकर ले जाते, तो बहुत बिकतीं । ऊपरी जनको भी अब ताँबेकी वस्तुएँ अधिकाधिक संख्यामें जरूरी --एक तो हर साल वह कुछ न कुछ सस्ती होती जाती थीं; दूसरे मिडी-काठकी चीजोंसे वे चिरस्थायी होतीं । जहाँ पच्चीस साल पहले ताँवैकी पतीली एकाध घरोंमें दिखायी पड़ती वहाँ अब उससे बिन्ले ही घर वाली थे। सोने-चाँदीका भी रवाज बढ़ने लगा था ! और इन सबके बदले इन जनोंको आहार, कंबल, चमड़ा, घोड़े या गाये बैचनी पड़ती, जिससे उनकी अवस्था गिरती जा रहीं थी। ऊपरके