पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/६५

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कर तथा शरीरलकि खाने से कार खरीदी पनकी जगह क्या वोगासे गंगा उस वाणीके न मानने वाले बहुत होते जा रहे हैं । अब सुनते हैं मद्रोंपशुका खेतीसे भी पैट नहीं भर रहा है। अब वे वहुवालके आहारपरिधानको ढो-होकर कह दे आ रहे हैं, और उनकी जगह क्या मिलता है देखो यही एक घोडेको देकर खरीदी पतीली । भूखे मरने लगे तो क्या इस पतीलीकै खानेसे पेट भरेगा ? अब पुरुओंको पेटके आचार तथा शरीरके वस्त्रसे रहित पाओगे, और उनकी जगह उनके धरोंमें इन पतीलियोंको पाओगे ।" | और बाबा ! एक और सुना है, निचले मद्रोंकी स्त्रियोंने कानों और गलोंमें पीले सफेद आभूषण पहनने शुरू किये हैं। एक कानके आभूषण में एक धोखेका दाम लग जाता है, बाबा ! उसे अयः नहीं हिरण्य ( सोना ) कहते हैं, और सफेद को रजत !” । कोई मार नहीं देता इन अधर्मियोंको । ये सारे वस्तु-जन-मेल । का सत्यानाश करके छोडगे, थे हमारे आहार-परिधानके लिए जो कुछ बच रहा है, उसे भी नहीं छोड़ेंगे । इमारी स्त्रियाँ भी उनकी देखादेखी दो घोड़ेकै दामका कुंडल कानों में पहनेंगी । है कृपालु अग्नि । अब अधिक दिन मानवोंमें मत रखो, मुझे पितरोंके लोकमें ले चलो ।” एक और भारी पाप बाबा ! भद्र और पर्श कहीसे आदमी पकड़ लाये हैं, उनसे अयाखड्ग, अया-कुठार बनवाते हैं। वे बड़े चतुर शिल्पी हैं वावा ! किन्तु, मद्र पर्श उन्हें पशुकी तरह जब चाहते हैं रखते हैं, जब चाहते बेच देते हैं। खेतीका काम, कम्बल बुननेका काम और क्याक्या दूसरे काम ये लोग इन्हीं पकड़कर रखे लोगों-जिन्हें वे दास कहते हैं—से कराते हैं ।। "मनुष्यको खरीदना बेचना ! हम तो आहार-परिधानको बेचना भी बुरा मानते थे, किन्तु हमारे पूर्वज पितरोंको यह आशा न थी, कि ये मद्र-कुल-कलंक इतने नीचे गिर जायेंगे । जब अंगुली सड़ने लगे तो उसकी दवा है, काट फेंकना, नहीं तो सारा शरीर सड़ जायगा। इनः