पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/६३

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वोल्वासे गंगा -कभी देवौका आशीर्वाद नहीं मिलेगा । घोर अन्धकारवाले पावालमें ये जायेंगे वत्स ! जरूर जायेंगे। इन्हींकी देखा-देखी इन्हींके इरसे हमारे मिट्टी पत्थरवाले ग्राम बसे । पहले ऐसे ही तम्बुवाले आज यहाँ कल वहाँ रहनेवाले-आम वसुकी कुक्षिमें थे। किंतु इन मदने, इन पशुओंने यह बात तोड़ दी। कहाँसे देखकर धरती माताकी छाती चोरी इन्होंने इन्हीं अयः-शस्त्रोंसे । ऐसा पाप कभी किसीने नहीं किया। धरती को माता कहते हैं न वत्स ! "हाँ, बाबा | धरतीको माता कहते हैं, देवी कहतॆ हैं, उसकी पूजा करते हैं।” और उस धरती माताकी छातीको अपने हाथोंसे इन पापियोंने चीरा । और क्या किया--नाम भूलता हैं, स्मृति काम नहीं • करती वत्स ] । कृषि, खेती हाँ, कृषि और खेती बलायी । गहुँ बोया, ब्रीहि (चावल) औया, जौ बोया अाज तक कभी यह सुना नहीं गया। हमारे पूर्वजोंने कभी धरती माताकी छाती नहीं चौरी, देवीका अपमान नहीं किया । धरती माता हमारे पशुओंके लिए घास देती थी। उसके जंगलमै तरह-तरहके मीठे फल थे, जो हमारे खानेसे खतम नहीं होते थे। किंतु इन मद्रोंके पाप और उनकी देखा-देखी किये गये हमारे पापके कारण वह पौरिसा भर उगनैबाली धासे कहाँ हैं ? अब पहले जैसी मोटी गाये—जिनमेसे एक सारे मद्र जनके एक दिनके भोजनको पर्याप्त हो सकतीं-कहाँ हैं ? न वे गाये, न वै घोड़े, न ३ मैहे हैं। जंगलके हरिन और भालू भी अब उतने बड़े नहीं होते। आदमी भी उतने दिनों नही जीते। यह सब पृथवी देवीकै कोपकै कारण है वत्स ! और कुछ नहीं ।”

  • बाबा ! आपने कितनी शरद ( जाड़े) देखे हैं १॥ सौ से ऊपर वत्स ! उस वक्त हमारे गाँव दश तम्बू थे, अब