पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/६२

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पुरुहूत बड़ी टाँगोंवाले छोटे-मोटे पहाड़ जैसे जन्तु होते हैं, क्या कहते हैं। बच्चा १ अब स्मृति क्षीण होती जरिही ।" उष्ट्र ( शुतुर, केंट ) बाबा ! लेकिन वह पहाड़, जितना नहीं होता । एक दिन एक निचला माद्र उष्ट्र का बच्चा लाया था। छै महीने का बतलाता था, वह हमारे घोड़ोंके बराबर था ।” “हाँ वत्स ! ये जो बाहरके देशोंसे धूमकर आते हैं झूठ बोलना बहुत सीख जाते हैं। कहते थे-क्या कहते हैं ?”” । | उष्ट्र ।। “हाँ उष्ट्रकी गर्दन इतनी लम्बी होती है कि वह वक्षुके इस तट पर खड़ा हो उस तटकी घासको चर सकता है। यह भी झूठ है न बच्चा ?' हाँ, बाबा ! उस बच्चेकी गर्दन घोड़ेसे जरूर बड़ी थी, किंतु घास चरनेकी बात बिलकुल झूठ थी । “इन्हीं झूठे मद्रों और पशुओंने अयः-कुठार, अयः-खड्गकी बीमारी फैलायी । पशुओंने हम उत्तर-मद्रोंपर इन हथियारोंसे हमला किया। बापके समयकी बात है, दो-दो घोड़े देकर एक-एक अयः-कुठार निचले मद्रसे हमारे लोगोंने खरीदा ।” श्रयः कुठारके सामने पाषाण-कुठार बेकार थे न बावा ? "हां, बेकार थे वत्स ! इसीलिए मजबूर होकर अयः-शस्त्र लेने पड़े । और जब पुरुओंपर निचले मद्रोने आक्रमण किया तो तुम्हारे लोगोने हम मद्रोसे अयः-शस्त्र खरीदे । उत्तर मद्रों और पुरुओंमें कभी झगड़ा नहीं सुना गया वत्स ! किंतु पर्श और निचले भद्र सदासे दस्युका काम करते आये हैं, सदासे पुराने धर्मको छोड़कर नयी बाते करते आये हैं, और उनके कारण हमारे लोगोंको भी अपनी प्राण-रक्षाके लिए वैसा करना पड़ा। मैं समझता हूँ, जब तक निचले मद्र और पर्छ भी अयः-शस्त्रोंको नहीं छोड़ते, तब तक हम ऊपर वालोका उन्हें छोड़ना आत्म-हत्या करना है। किंतु अयः ( तवा ) का इतना प्रसार बुरा है, इसमै तो शक नही वत्स ! इस पापके प्रसारक यही दोनों जन हैं, इनको