पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/६०

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पुरुहूत ५. और कथा शुरू हुई कैंडीके पास रखी ताँबेकी पतौलीको देखकर । बाबाने कहा "इस ताँबे और खेतों को देखकर मेरा दिल जल जाता है। जबसे ये चीजे वक्षुकैतटपर आयी, तबसे चारों ओर पाप-अधर्म बढ़ गया, देवता भी नाराज हो गये, अधिक महामारी होने लगी, अधिक मार-- काट भी ।” तो पहले ये चीजें नहीं थीं बाबा ?'-पुरुहूतने कहा। “नहीं बच्चा ! ये चीजें मेरे बचपनमें जरा-जरा अग्रिी, मेरे दादाने तो इनका नाम तक न सुना था | उस वक्त पत्थर, हड्डी, सींग लकड़ीके. ही सारे हथियार होते थे । “तो लकड़ी कैसे काटते थे बाबा ! "पत्थरके कुल्हाड़ेसे ।” “बहुत देर लगती होगी, और इतनी अच्छी तो नहीं कटती होगी १9 इसी जल्दीने सारा काम चौपट किया । अब अपने दो महीने खाने तथा आधी जिंदगीके चढ़नेके एक अश्वको देकर एक अयः(तबेका) कुल्हाड़ा लो, फिर जगलका जंगल काट उजाड़ दो अथवा गाँवके गाँवको मार डालो। लेकिन गाँव जगलके वृक्षोंकी तरह निहत्या नहीं है, उसके पास भी उसी तरहका तेज़ कुल्हाड़ा है। इस अयः कुठारने युद्धको और क्रूर बना दिया। इसके घावसे जहर पैदा हो जाता है। पहले बाणके फल पत्थरके होते थे, वे इतने तीक्ष्ण नहीं थै, ठीक है; किंतु चतुर हाथोंमें ज्यादा कारगर होते थे । अब इन ताँबेके फलोसेदुधमुंहे बच्चे भी बाघका शिकार करना चाहते हैं। अब काहे कोई निष्णात धनुर्धर होना चाहेगा।" . *बाबा ! मैं तेरी एक बातसे सहमत हूँ। मनुष्य एक जगह वाँधकर रखनेके लिए नहीं पैदा किया गया। "ही वत्स ! पहले दिनके किये पाखाने पर रोज-रोज पखाना करना हो तो कितना बुरा लगेगा ! हमारा तबू आज यहाँ है, पशु यहाँकै.