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निशा
 

अभी बुढ़िया ने हाथ से अपने केशो हटाया। उसकी भावें भी सफेद हैं, श्वेत चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ी हुई हैं, जो जान पड़ती हैं सभी मुंह के भीतर से निकल रही हैं। गुहा के भीतर आग का धुंआ और गर्मी भी है खासकर जहाँ बच्चे और हमारी दादी है। दादी के शरीर पर कोई वस्त्र नहीं, कोई आवरण नहीं। उसके दोनों सूखे-से हाथ पैरों के पास धरती पर पड़े हुए हैं। उसको आँखे भीतर घुसी हुई हैं, और हलके नीले रंग की पुतलियाँ निस्तेज शून्य-सी हैं, किन्तु बीच-बीच में उनसे तेज उछल जाता है, जिससे जान पडता है कि उनकी ज्योति बिलकुल चली नहीं गई है। कान तो बिलकुल चौकन्ने मालूम होते हैं। दादी लड़कों की आवाज को अच्छी तरह सुन रही जान पड़ती है। अभी एक बच्चा चिल्लाया, उसकी आँख इधर घूमी। दो बरस-डेढ बरस के बच्चे हैं,जिनमे एक लड़का और एक लड़की, कद दोनों के बराबर है। दोनों के केश ज़रा-सा पीलापन लिए सफेद हैं, बुढ़िया की भाँति किन्तु ज्यादा चमकीले, ज्यादा सजीव | उनका शरीर पीवर पुष्ट,अरुण गौर,उनकी आँखें विशाल पुतलियाँ घनी नीली लड़का चिल्ला रो रहा है,लड़की खड़ी एक छोटी हड्डी को मुँह में डाले चूस रही है। दाढीने बुढापे के कम्पित स्वर में कहा- "अगिन ! आ ! यहाँ आ अग्नि! दादी यहाँ ।" अग्नि उठ नहीं रहा था। उस समय आठ बरस के लड़के ने आकर उसे गोद में ले दादी के पास पहुँचाया । इस लड़के के केश भी छोटे बच्चे से ही पाहु-श्वेत हैं, किन्तु वे अधिक लम्बे हैं, उनमे अधिक लटे पड़ी हुई हैं। उसके आपाद नग्न शरीर का वर्ण भी बैसाही गौर है,किन्तु वह उतना पीवर नहीं है; और उसमें जगह-जगह काली मैल लिपटी हुई है। बड़े लड़केने छोटे बच्चे को दीदी पास खड़ा कर कहा – "दादी ! रोचना ने हड्डी छीनी । अगिन रोता ।" लड़का चला गया। दादीने अपने सूखे हाथों से अग्नि से को उठाया।वह अब भी रो रहा था, उसके बहती हुई धाराने उसके