पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/५६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

पुरुहूत પણ | "हाँ, ताँवा बहुत महँगा है रोचना ! इस पतीली पर एक घोड़ेका दाम खर्च हुआ है, किंतु रास्तेमें यह अच्छी रहती है।” "तो तेरे घर बहुत पशु होंगे पुरुहूत ११ “और बहुत धान्य भी रोचना ! इसीलिए यह एक घोड़े-मूल्यको पतीली है। अच्छा, यह ले मैंने मास काट दिया। पानी और नमक डाल तू तो मास को आग पर चढ़ा और मैं उस बगल में भी लकड़ीकी आग तैयार करता हूँ। फिर थोड़ीसी घास काट गदहों और घोड़ोंको बीचमें यह बाँधना है। जानती है न चीतेको गदहेका मास उससे भी अधिक मीठा लगता है, जितना कि हमें बछिया का और झब्बर ! तब तक भी इस पर जीभ चला ।—कह जरासी मास लगी एक हुड्डीको झबराके सामने फेंक दिया । झबरा पूँछ हिलाता हलीको पैरमें दबा दाँतोंसे तोड़नेकी कोशिश करने लगा। पुरुहूतने कपरका कंचुक और कमरबन्द हटा दिया । बिना वीरको कुरतीके नीचे उसकी चतुरस्त्र छाती और पृथुल बाँहें बतला रही थीं कि इस बीस वर्षके तरुणके शरीरमें कितनी ताकत है। काम करते वक्त पुरुहूत का रो नाचता था । कैंडीमें से दरात निकाल उसने बातकी बातमे घासका एक डैर जमा कर दिया, फिर कान पकड़ गदहको ला बँटा गाड़कर बाँध सामने घास डाल दिया इसी तरह मैड़की भी। और कामसे निवृत्तहो, अव पुरुहूत भी आगके पास आ बैठा। रोचना पतीलीसे उबले मास-खंडोंको निकाल कर चमड़े पर रखती जा रही थी। पुरुहूतने कंडी मेंसे एक चर्म-खंड निकाल बाहर बिछा दिया, फिर एक काठका सुन्दर चषक (प्याला) तथा झिल्लीमें रखा पेय निकाल बाहर रखा उसके साथ बाँसुरी भी निकल कर जमीन पर गिर पड़ी। मालूम हुआ जैसे कोई कोमल शिशु गिर पड़ा है और चौटके डरसै माँ तड़प रही है; उसने जल्दीसै बाँसुरीको उठाकर कपड़ेसे पोंछा और चूम कर वह उसे कंडीमें रखने लगा । रोचना देख रही थी, वह वीचमें बोल उठी