पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/५३

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वोलासे गंगा संख्याकी दृष्टिसे पुरु मदोंसे कम न थे ! पुरुओंके नीचेवाले मद्र निचले मद्र कहे जाते थे । रोचना उपरले मद्रकी थी। पुरुहूतके मामाका गाँव भी उपरले मद्रमै था। |, इस बातके जानने पर दोनो कुछ और आत्मीयता अनुभव करने लगे। पुरुहूतने फिर बात आरम्भ करते हुए कहा “चना! लेकिन आज हम डाँडे पर नहीं पहुँच सकते । तूने अकेले अनेका साहस कैसे किया है। “हाँ, मैं जानती थी कि रातको चीवैसे गदहको बचाना मुश्किल है, लेकिन बाबाके लिए खानेकी चीजें लाना जरूरी था-पुरुहूत ! बाबा मुझे बहुत मानता है। मैने सोचा रास्ते में कोई और भी मिल जायेगा, आज कल डाँडेके जानेवाले बहुत होते हैं । और यह भी खयाल आया कि आग जला लेने पर काम चल जायेगा । रास्ते चलते आग नहीं जलायी जा सकती। अरणी है तेरे पास, रोचना !" है । “होने पर भी अरणीको रगड़कर अग्नि-देवताको प्रकट करना आसान नहीं है । खैर, मेरे पास एक पवित्र अरणी है, वह हमारे घरमें पितामहके समथसे चली आयी है। इस अरणीसे प्रकट हुई अग्नि द्वारा बहुतसे यश, बहुतसी देव-पूनाएं हुई हैं। मुझे अग्नि-देवताका मंत्र भी याद है, इसलिए वे इससे जल्दी प्रकट हो जाते हैं।” "और पुरुहूत ! अब हम दो हैं, इसलिए चीतेको पास आनेकी हिम्मत न होगी । “और हमारा झबरा भी है, रोचना ।” **झबरा ! “हाँ, इस लाल श्वक (संग=कुत्त) का नाम है ।। झबरा । झबरा बोलते ही झबरा खड़ाहो मालिकको हाय चाटने लगा।