पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/५२

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पुरुहूत - घर पर मैड़े नहीं थी, इसलिए मैंने गदहों हीको ले लिया। अच्छा, तुझे कहाँ जाना है, मित्र !! “डाँडे पर । आजकल हमारे घोड़े, गाये, मैड़े वहीं हैं।" मैं भी वहीं जा रही हैं। सत्त, दाना, फल, नमक पहुँचाने जा रही हैं। • वैरै पशुओंको कौन देखता है ? मेरा परदादा । और भाई, बहने भी । *परदादा ! वह वो बहुत बूढ़ा होगा १ वहुत बूढा, उतना चूढ़ा आदमी तो शायद कही नहीं मिलेगा। *फिर वह पशुओंको क्या देखता होगा ?

  • अभी वह बहुत मजबूत है। उसके बाल, भौं सव सफेद हैं । किंतु उसके नये दाँत है, देखने में पचास-पचपनको मालूम होता है।
    • तो उसे घर पर रखना चाहिए ।
  • वह मानता ही नहीं, मेरे पैदा होनेके पहले से वह गाँव नहीं गया ।

गव नहीं गया | “जाना नहीं चाहता । गाँवसे उसको घृणा है। वह कहता है, मनुष्य एक जगह बाँध कर रखने के लिए नहीं पैदा किया गया । वहुत पुरानी बाते सुनाता है। अच्छा तेरा नाम क्या है मित्र १३

  • पुरुहूत माद्री-पुत्र पौरव ।”

और तेरा नाम स्वसर (बहिन) १५ रोचना माद्री । “तो तू मेरे मातुल-कुलकी है स्वसर ! ऊपरी मद्र था निचला १ ऊपरी मद् ।” वलु नदीकै बाँथे तट पर पुरुओंके ग्राम थे, लेकिन उसका निचला भाग–जो नीचे के मैदानसे मिलता है--मद्रोके हाथमें था, और दायाँ तट ऊपर मद्रोंके, नीचे परशुओंके हायमें। भूमि और जन