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वोलासे गंगा इसी वक्त लकड़ीके घण्टेको खन-खन करती आवाज सुनायी दी। तस्याने कुछ दूर झाड़ीसे आधा छिपे एक गदहेको आते देखा, फिर दूसरेको, और पीछे एक षोड़शी बाला अपनीही जैसी पोशाक तथा पीठ पर कंडी लिए आती देखी । तरुणके मुँइसे अनायास सीटी बजने लगी–जब वह कुछ सोचने लगता तो तरुणके मुंहसे सीटी बजने लगना सॉस जैसा स्वाभाविक होजाता था। षोडशीके कानमें सीटीकी आवाज एक बार पड़ी जरूर और उसने उस जगहकी ओर ताकाभी, किन्तु तरुण का शरीर गुल्मसे आच्छादित था । यद्यपि तरुणने ५० हाथ दूरसे देखा था किन्तु षोड़शीके भुखकी एक हल्की किन्तु सुन्दर छाप उसके अन्तस्तल पर पड़ गयी थी और उत्सुकतासे वह यह जाननेकी प्रतीक्षा कर रहा था कि वह किधर जा रही है। इधर वस्तुकी ऊपर की ओर कोई गाँव नहीं बसा हुआ है, यह तरुण जानता था । इसलिए वहमी उसीकी तरह पंथबारिणी है, यह वह समझ सकता था। घोड़शीके सुन्दर किन्तु अपरिचित चेहरे को देख कर झबरा भेंकने लगा। तरुणके चुप झबरा' कहने पर वह वहीं चुपचाप बैठ गया । षोड़शीके गदहे पानी पीने लगे, और जब वह अपनी कडी उतारने लगी; तो तरुणने अपनी मजबूत भुजाओं में लेकर उसे भीचे रख दिया। षोड़शीने मुस्कराहटके रूपमें कृतज्ञता प्रकट करते हुआ कहा बड़ी गर्मी है । गर्मी नहीं है, चढ़ाईमें चलकर आनेसे ऐसाही मालूम होता है। 'थोडेसे विश्रामसे ही पसीना चला जायेगा । अभी दिन अच्छा है ।। *अभी दस-पन्द्रह दिन और वर्षाका डर नहीं । “वर्षासे मुझे डर लगता है। रास्ते, नालों और बिछलीके कारण बहुत खराबहो जाते हैं । गदहके लिए चलना और मुश्किल होता है ।