पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/५०

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४६ अरसे पर्वत वह मुंहसे धीटी व पतली रुपहला के लिए किसी पुरुहूत पीठ पर सत्तसे भरी घोड़ेके बालकी बड़ी-बड़ी थैलियाँ थीं। तरुणके पीछे एक लाल झवरा कुत्ता चल रहा था। कलविंकके मधुर गम्भीरस्वरसे पर्वत प्रतिध्वनित होरहा था, जिसका प्रभाव तरुण परमी मालूम होता था, और वह मुंह से सीटी बजाता जारहा था। अभी एक चट्टानके ऊपरसे एक पतली रुपहली धारके रूपमें गिरता चश्मा आ गया । धाराको चट्टानके प्रातसे खुलकर गिरनेके लिए किसीने लकड़ीकी नाली लगादी थी । हाँफती मेड़े नीचे पानी पीने लगीं । तरुणने पासमें फैली अंगूरकी लताओंमें छोटे अंगूरोंके गुच्छे लटकते देखे । बैठ कर कंडीको जमीन पर उतार वह अंगूर तोड़कर खाने लगा। अभी अंगूरोंमे कसैलापन लिए तुर्थी ज्यादा थी। उनके पकनैमें महीने भरकी देर थी, किन्तु तरुण पथिकको वे अच्छे मालूम होरहे थे, इसलिए वह एक-एक दानेको मुंहमें धीरे-धीरे फेकता जारहा या। शायद वह प्यासी ज्यादा था और तुरन्त चलकर आयेको शीतल पानी हानिकारक होता है, इसीलिए वह देरकर रहा था। पानी पीकर भेड़े चारों ओर उगी हरी घासको चर रही थीं। झबरा कुत्ता गम अधिक अनुभव कर रहा था, इसलिए उसने न अपने मालिकका अनुकरण किया और न मैड़ोंका, वह धारके नीचे फैले पानीमें बैठ गया । अबभी उसका पैट भाथीकी तरह फूल-पचक रहा था और उसकी लाल लम्बी जीभ खुले मुंहसे निकलकर लपलपा रही थी। तरुणने धारसे नीचे मुँह खोला, और गिरती धारासे एक साँसमे प्यास बुझा, चिल्लूमें पानी भर अगले केशोंकी जड़ भिगोते हुए मुंहको धोया। उसके अरुण गालों और लाल ओठोंको ढाँकनैके लिए पिंगल रोम अभी आरम्भिक तैय्यारीमें थे। भेड़ों को बड़े मनसे चरते देख तरुण कंडीकै पास बैठ गया और कानोंको तिरछा कर अपनी ओर ताकते झवराकी आखोंके भावको परख कर, कडीमे एक ओरसे हाथ डाल कर सूखी मैड़की रानको एक टुकड़ा कमरबन्दसे लटकती चमड़े में वन्द ताँबेकी तेज छुरीसे काट-काट कर कुछ स्वयं खाने और कुछ झबरेको खिलाने लगा।