पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/४७

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वोगासे गंगा ने देखा कि पुरुओंकी संख्या सौ के करीब होगी । अपनी चालीसकी टुकड़ी लड़ाई शुरू करनी चाहिये या नहीं, इस पर ज्यादा मत्थापच्ची वह करना नहीं चाहता था। उसने सींगौके लम्बे भालेको संभाल कर दुश्मन पर हमला करने की आज्ञा दी। कुरु वीर और वीरांगनानै--ह, वीरांगनाये आधीसे कम न र्थी-निर्भय हो घोड़ोंको आगे दौड़ाया। उन्हें देखतेही कुञ्जको पशुओंको रोक रखनेके लिये छोड़, पुरु नीचैकी ओर दौड़ पड़े, और घोड़ोंसे पूरा फायदा उठाने के लिये नदी किनारे एक खुली जगह में खड़े हो, कुरुका इंतज़ार करने लगे । अमृताश्वकी आकृति उस वक्त देखने लायक थी । उसको घोड़ा अमृत और वह दोनों एकही शरीरके अंग मालूम होते थे। हरिशके वेज़ सींगका उसका भाला तो एक बार जिसके शरीर पर लगता, वह दूसरे बारके लिये अपने घोड़े पर बैठी नहीं रह सकता था । पुरुओंने धनुष-बाण और पाषाण-परशु पर ज्यादा भरोसा कर गलतीकी थी, यदि उनके पास भी उतनेही सींगके भाले होते, तो निश्चयही कुरु उनका मुकाबला नहीं कर सकते थे। एक घटा संग्राम होते हो गया, कुरु अब भी डटे हुये थे, किन्तु उनके एक तिहाई योद्धा इतीहत थे; यह डरकी बात थी। इसी वक्त तीस कुरु घुड़सवार ललकारते हुये संग्राम-क्षेत्रमें पहुंचे। कुरुकी हिम्मत बहुत बढ़ गई। पुरु बुरी तरहसे मरने लगे। उनकी नाजुक हालत देख पशुओंको रोक रखनेके लिये छोड़े हुये घुड़सवार भी आ पहुँचे; किन्तु इसी समय चालीस कुरु-कुरुआनियोंका जत्था लिये मधुरा आ पहुँची । डेढ़ घंटा जस कर युद्ध हुआ। अधिकांश पुरु हताहत हुये; कुछ भाग निकले। घायलोका खात्मा कर कुरु-वाहिनी पुरु-ग्रामकी और बढी । वह चार क्रोश उपर था। सारी ग्राम सूना था । लोग तम्बुओंको छोड़ कर भाग गये थे। उनके पशु जहाँ-तहाँ चर रहे थे; किन्तु कुरुको पहले . पुरुश्रीसे निबटना था । पुरु बुरी तरह घिर गये थे, ऊपर भागनेका,