पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/४५

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४२ वोलासे गंगा ग्राममे पहुँचा । ग्राममें किसीके तंबूघरमे कोई मारा गया था, किसी में कोई घायल पड़ा था; किसीकी लड़की लूटी गई थीं। चारों ओर कुहराम मचा हुआ था। मधुराकी माँ रो रही थी और बाप ढाढस बँधा रहा था, जबकि घोड़ा उसके बालोंके तबूके बाहर खड़ा हुआ है। अमृताखके उतर जाने पर मधुरा कूद पड़ी और अमृतावको बाहर खड़े रहने के लिये कहकर भीतर चलीं गई । एकाएक सामने खड़ी दुई लड़कीको देख, 'पहले माँ-बापको विश्वास न हुआ। फिर माँने गोदमें ले, उसके मुखको असुश्रोसे भिगोना शुरू किया। उसके शात होने पर बापने पूछा और मधुराने बतलाया--"वाहीक पक्थे लड़कियों को लूट कर ले जा रहे थे। मुझे लूट कर ले जाने वाला पिछड़ गया या। मौका पाकर मै घोड़ेसे कूद गई । वह पकड़ बर फिर चढ़ाना चाहता था। मैं उसका विरोध कर रही थी। उसी वक्त एक तरुण सवार आ गया, उसने वाहीकको ललकारा और उसे घायल कर गिरा दिया। वही कुछ तरुण मुझे यहाँ पहुँचाने आयी है।” बापने कहा--"तो तरुणनै तुझे नहीं ले जाना चाहा है। *बलात् नहीं ।” “किन्तु इमारे जनपदके नियमके अनुसार तु उसकी हुई।" और मैं उससे प्रेम भी करती हूँ तात ! मधुराके बापने बाहर आकर अमृताश्वका स्वागत किया और उसे तंबूके भीतर लिव लाया । गाँव वालोको यह अजीब-सी बात मालूम हुई; किन्तु सभीके सम्मान और सहानुभूतिके साथ अमृतावने । मधुराके साथ ससुराल छोड़ी। अब अमृताश्व अपने कुरु-आमका महापितर था। उसके पास पचासों-घोड़े गायें, तथा बहुत सी मैड़-बकरियाँ थीं। उसके चार बेटे और मधुरा रेवड़ और घरको काम देखते थे। अमके दरिद्र कुलके कुछ आदमी भी उसके यहाँ काम करते थे-नौकरके तौर पर नहीं,