पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/४२

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अमृताश्व "और मुझे भी मधुरा ! वहाँ पुरुष-स्त्री यह भी नहीं जानते कि उनमे प्रेमकी सम्भावना है भी।" “मातुल पुत्रीको व्याह इससे अच्छा है क्योंकि उसमें पहले से परिचित होनेका मौका मिलता है । "तेरा कोई ऐसा प्रेमी या मधुरा १) “नहीं मेरी कोई बुआ नहीं है ।” कोई दूसरा १ “स्थायी नहीं । *क्या तू मुझे भाग्यवान बना सकती है ! मधुरा की शर्मीली निगाहें नीची हो गईं। अमृताश्वने कहामधुरा ! ऐसे भी जनपद हैं, जहाँ स्त्रियाँ दूसरेकी नहीं, अपनी होती हैं । नहीं समझी अमृताश्व ! . "उन्हें कोई लुटता नहीं, उन्हें कोई सदाके लिये अपनी पत्नी नहीं बना पाता । वहीं स्त्री पुरुष समान होते हैं । समान हथियार चला सकते हैं।” "हाँ; स्त्री स्वतंत्र है । कहाँ है वह जनपद, अमृत-- अमृताश्व ! "नहीं अमृत ही कह मधुरा ! वह जनपद यहाँसे पश्चिममें बहुत दूर है । “तू वहाँ गया है अमृत ११ हाँ । वहाँकी स्त्री आजीवन स्वतत्र रहती है। जैसे जंगल स्वतंत्र विचरता मूग, जैसे वृक्षों पर स्वतन्त्र उड़ती चिड़ियाँ ।” वह बड़ा अच्छा जनपद होगा ! वहाँ स्त्रीको कोई नहीं लूटता न ? स्वतंत्र बाघिनको कौन जीते जी लूट सकता है ? और पुरुष, अमृत १५ "पुरुष भी स्वतंत्र है ।