पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/४१

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३८ . बोलणासै गग शासक ) के विस्तृत अगिनमे जमा हुये । सोम, मधुसुरा और स्वादिष्ट गो-अश्व-मसि लाया जा रहा था । महापितर पुत्रोत्पतिको महोत्सव मना रहे थे। कृच्छ्ने अपनेको हिलने डोलने लायक नहीं रखा था, उसकी जगह सोमा और ऋज्राश्व वहाँ पहुँचे। बड़ी रात तक पान, गीत, नृत्य महोत्सव मनाया गया । सोमाके गीत और शुभ्रावके नृत्यको सदाकी भाँति कुरुओंने बहुत पसंद किया ।

  • मधुरा ! थक तो नहीं गई ?” “नहीं, मुझे घोडेकी सवारी पसन्द है।" **किन्तु उन दस्युओंने तुझे बुरी तरह पकड़ रखी था ?

हाँ, वाल्हीक पक्की गौओं और अश्वको नहीं, बल्कि लड़कियोंको लूटने आये थे। हाँ, पशुका लूटना दोनों जनमें चिरस्थायी शत्रुता पैदा करता है, किन्तु कन्याको लूटना थोड़े ही समयके लिये-आखिर ससुरको जामाताका सत्कार करना ही पड़ता है।” **किन्तु मुझे तेरा नाम नहीं मालूम ?” अमृताश्व, कृच्छाश्व-पुत्र, कौरव ।” कौरव | कुरु मेरे मामाके कुल होते हैं ।” *मधुरा, अब तु सुरक्षित है। बोल, कहाँ जाना चाहती है ? 'मधुराके मुख पर कुछ प्रसन्नताकी रेखा दौड़ने लगी थी, किन्तु वह बीच हीमें रुक गई । अमृताश्व समझ गया, और बातका रुख दूसरी ओर मोड़ते हुये बोला-"पक्योंकी कन्याये हमारे प्राममे भी आई हैं।

  • सभी लूटकर है। * नहीं, उनमें मानुल-पुत्रियाँ अधिक हैं।"

तभी तो । किन्तु लड़कियोंके लिये यह लूट-मार मुझे बहुत बुरी । मालूम होती है।”