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१—निशा



देश–वोल्गा-तट (ऊपरी), जाति -हिन्दी-योरोपीय,
काल-६००० ईसा-पूर्व ।



( १ )

दोपहर का समय है, आज कितने ही दिनों के बाद सूर्य का दर्शन हुआ। यद्यपि इस पाँच घन्टे के दिन में उसके तेज में तीक्ष्णता नहीं है,तो भी बादल, बर्फ, कुहरे और झंझा के बिना इस समय चारों और फैलती हुई सूर्य की किरणें देखने में मनोहर और स्पर्श से मन में आनन्द का संचार करती हैं । और चारों ओरका दृश्य १ सघन नील-नभ के नीचे पृथिवी कपूर-सी श्वेत हिमसे आच्छादित हैं। चौबीस घन्टे से हिमपात न होने के कारण, दानेदार होते हुए भी हिम कठोर हो गया है। यह हिमवसना धरती दिगंत व्याप्त है, बल्कि उत्तर दक्षिण की ओर कुछ मील लम्बी पहली टेढ़ी-मेढ़ी रेखा की भाँति चली गई है, जिसके दोनों किनारों की पहाड़ियों पर दूर से देखने पर काली वनपंक्ति है। आइए इस वनपक्ति को कुछ समीप से देखे। इसमें दो तरह के वृक्ष ही अधिक हैं -एक श्वेत-बल्कलधारी किन्तु आज-कल निष्पत्र भुर्ज ( भोजपत्र); ओर दूसरे अत्यन्त सरल उत्तुग समकोण पर शाखा को फैलाये अतिः झुरित या कृष्ण-हरित सुई से पत्तों वाले देवदारु। वृक्षों का कितना ही भाग हिम से ढका हुआ है, उनकी शाखाओं और स्कंधों पर जहाँ-तहाँ रुकी हुई बर्फ उन्हें कृष्णा-श्वेत बना आँखों को अपनी ओर खींचती है। और १ भयावनी नीरवता का चारों ओर अखंड राज्य है। कहीं से न झिल्ली को भंकार आती है, न पक्षियों का कलरव, न किसी पशु का ही शब्द।