पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३९

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बोल्गासे गंगा "तू अमृत क्या बनेगा ? जिस तरह चषक पर चषक उँडेले जा रहा है, उससे तो अ-चिरमें मृत-सा बन जायेगा । किन्तु १ जानता हैं ऋज़ ! मैं सोमसे कितना प्रेम रखता हूँ ??? इसी वक्त भुने मांसके तीन टुकड़ोंको चमड़े पर लिये सोमा आकर बोली --- किन्तु कृच्छु ! तू सोमासे प्रेस नहीं रखता ?' । सोमासे भी और सोमसे भी । कृच्छने परिवत्तित स्वरम कहा। उसकी आँखें लालहो रही थीं, और सोमा, आज तुझे क्या परवाह ?' “हाँ, आज तो मै अतिथि शृज्रकी हैं ।। “अतिथि या पुराने मित्रकी १-हँसनेकी कोशिश करते हुये कृछूने कहा। ऋज्रावने हाथ पकड़कर सोमाको अपनी बग़ल में बैठा लिया, और सोम पूर्ण चपकको उसके मुंह में लगा दिया। सौमाने दो इँट पीकर कहा---'अव ३ पी ऋज़ ! बहुत समय बाद यह दिन आया है। | ऋञ्जाश्वले सारे चषको एक साँसमें साफ़ कर नीचे रखते हुए कहा-“तेरे ओठोंके लगते ही सोमें, यह सोम कितना मीठा हो जाता है ! कृच्छ्राश्व पर सोम का असर होने लगा था। उसने झटपट अपने चषकको भर कर सोमाकी और बढ़ाते हुए लड़खड़ाती ज्ञानभै कहा-- “तो -1-1-सो-1-1-मे-"." ! इस—स् - -भी-१-मू-म-धू धु-रबू-ब-ना- दे।” सोमाने उसे ओठोंसे छू लौटा दिया । अमृताश्त्रको बड़ोंके प्रेमालापमें कम रस आता था, इसलिये वह समवस्यक बालक बालिकाकै साथ खेलनेके लिये निकल भागा | कृच्छ्रावने झपी जाती पपनियों और गिरे जाते शिरके साथ कहा--"सो- -मे--1 गू-गा-ना-गा-ॐ १ “हाँ, तेरे जैसे गाय क्या कुरुमे कहीं हैं ? *-डी-१-क-म्-मे-रे--जै सा--ग् - गा-य-क-नहीं-- । त्-तो-सू सु-न "